SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१-समुद्रपालीय २१९ १२. अहिंस सच्चं च अतेणगं च विद्वान् मुनि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, तत्तो य बम्भं अपरिग्गहं च। ब्रह्मचर्य और अरिग्रह-इन पाँच पडिवज्जिया पंच महव्वयाणि महाव्रतों को स्वीकार करके जिनोपदिष्ट चरिज्ज धम्मं जिणदेसियं विऊ॥ धर्म का आचरण करे। १३. सव्वेहिं भूएहिं दयाणुकम्पी इन्द्रियों का सम्यक् संवरण करने खन्तिक्खमे संयम बम्भयारी। वाला भिक्षु सब जीवों के प्रति सावज्जजोगं परिवज्जयन्तो करुणाशील रहे, क्षमा से दुर्वचनादि को : सहन करने वाला हो, संयत हो, चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए । का-पापाचार का परित्याग करता हुआ विचरण करे। १४. कालेण कालं विहरेज्ज रटे साधु समयानुसार अपने बलाबल बलाबलं जाणिय अप्पणो य। को, अपनी शक्ति को जानकर राष्ट्रों में सीहो व सद्देण न संतसेज्जा विचरण करे। सिंह की भाँति भयोवयजोग सुच्चा न असब्भमाहु॥ त्पादक शब्द सुनकर भी संत्रस्त न हो। असभ्य वचन सुनकर भी बदले में असभ्य वचन न कहे। १५. उवेहमाणो उ परिव्वएज्जा संयमी प्रतिकूलताओं की उपेक्षा पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा। करता हुआ विचरण करते। प्रियन सव्व सव्वत्था भिरोयएज्जा अप्रिय-अर्थात् अनुकूल-प्रतिकूल सब न यावि पूयं गरहं च संजए॥ (जो भी अच्छी चीज देखे या सुने, परीषहों को सहन करे। सर्वत्र सबकी उनकी) अभिलाषा न करे, पूजा और गर्दा भी न चाहे। १६. अणेगछन्दा इह माणवेहिं यहाँ संसार में मनुष्यों के अनेक जे भावओ संपगरेइ भिक्खू। प्रकार के छन्द-अभिप्राय होते हैं। भयभेरवा तत्थ उइन्ति भीमा भिक्षु उन्हें अपने में भी भाव से जानता दिव्वा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा॥ है। अत: वह देवकृत, मनुष्यकृत तथा तिर्यंचकृत भयोत्पादक भीषण उपसगों को सहन करे। १-यान् छन्दान् भावतस्तत्त्वत: । -साधारण लोगों में होने वाले औदयिकादिभावतो वा संप्रकरोति भृशं विकल्प वस्तुवृत्या भिक्षु में भी होते हैं, विधत्ते भिक्षुः पर भिक्षु उन पर शासन करे। -सर्वार्थ सिद्धि वृत्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy