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उत्तराध्ययन सूत्र
५. खेमेण आगए चम्पं
वह वणिक् श्रावक सकुशल चम्पा सावए वाणिए घरं। नगरी में अपने घर आया। वह संवडई घरे तस्स सुखोचित-सुकुमार बालक उसके घर दारए से सुहोइए।
में आनन्द के साथ बढ़ने लगा। ६. बावत्तरिं कलाओ य
उसने बहत्तर कलाएँ सीखीं, और सिक्खए नीइकोविए। वह नीति-निपुण हो गया। वह जोव्वणेण य संपन्ने युवावस्था से सम्पन्न हुआ तो सभी को
सुरुवे पियदंसणे॥ सुन्दर और प्रिय लगने लगा। ७. तस्स रूववइं भज्ज
पिता ने उसके लिए 'रूपिणी' नाम पिया आणेइ रूविणीं। की सुन्दर भार्या ला दी। वह अपनी पासाए कीलए रम्मे पत्नी के साथ दोगुन्दक देव की भाँति
देवो दोगुन्दओ जहा।। सुरम्य प्रासाद में क्रीड़ा करने लगा। ८. अह अन्नया कयाई
एक समय वह प्रासाद के पासायालोयणे ठिओ। आलोकन में-झरोखे में बैठा था। वज्झमण्डणसोभागं
वध्य-जनोचित मण्डनों-चिन्हों से युक्त वज्झं पासइ वज्झगे।
वध्य को बाहर वध-स्थान की ओर ले
जाते हुए उसने देखा। ९. तं पासिऊण संविग्गो
उसे देखकर संवेग-प्राप्त समुद्र समुद्दपालो इणमब्बवी। पाल ने मन में इस प्रकार कहाअहोऽसुभाण कम्माणं "खेद है ! यह अशुभ कर्मों का पापक निज्जाणं पावगं इमं ।। निर्याण-दुःखद परिणाम है।” संबुद्धो सो तहिं भगवं
इस प्रकार चिन्तन करते हए वह परं संवेगमागओ। भगवान्-महान् आत्मा संवेग को आपुच्छ ऽम्मापियरो प्राप्त हुआ और सम्बुद्ध हो गया। पव्वए अणगारियं ॥ माता-पिता को पूछ कर उसने
अनगारिता—मुनिदीक्षा ग्रहण की। ११. जहित्तु संगं च महाकिलेसं दीक्षित होने पर मुनि महा
महन्तमोहं कसिणं भयावहं। क्लेशकारी, महामोह और पूर्ण परियायधम्मं चऽभिरोयएज्जा भयकारी संग (आसक्ति) का परित्याग वयाणि सीलाणि परीसहे य ।। करके पर्यायधर्म-साधुता में, व्रत में,
शील में, और परीषहों में-परीषहों को समभाव से सहन करने में अभिरुचि रखे।
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