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________________ २१ समुद्रपालीय बीज के अनुसार फल पैदा होता है । यदि अच्छा फल चाहिए, तो अच्छा बीज बोना होगा । भगवान् महावीर का श्रावक - शिष्य 'पालित', अपने समय का एक बहुत बड़ा व्यापारी था। वह अंग देश की राजधानी चंपा में रहता था । किन्तु व्यापार के लिए वह समुद्र- यात्रा करता था, अतः उसे दूर-दूर के देशों में जाना पड़ता था । एक बार वह जलपोत से पिहुण्ड नगर में सुपारी और स्वर्ण आदि के व्यापार के लिए गया । वहाँ उसे बहुत समय तक रुकना पड़ा। युवक पालित की प्रामाणिकता और चतुरता की ख्याति नगर में घर-घर फैल गई । अतः वहाँ के एक संपन्न सेठ ने अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया । पालित अपनी गर्भवती पत्नी के साथ समुद्र के मार्ग से चंपा लौट रहा था । पत्नी ने जहाज में ही एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम 'समुद्रपाल' रखा गया । वह बहुत सुन्दर था । समय पर वह बहत्तर कलाओं में निपुण हुआ और परिवार में आमोद-प्रमोद के साथ सुखपूर्वक रहने लगा । 1 एक बार नगर के राज मार्ग पर उसने एक भयंकर अपराधी को राजाज्ञा से नगर - आरक्षकों द्वारा वध-भूमि की ओर ले जाते हुए देखा। उन दिनों प्राणदण्ड के अपराधियों की एक विशिष्ट वेषभूषा होती थी । उन्हें लाल कनेर के फूलों की माला और लाल कपड़े पहनाये जाते थे । नंगे शरीर पर लाल चंदन का लेप किया जाता था । गधे पर चढ़ाकर नगर में घुमाया जाता और उसके दुष्कर्म की घोषणा की जाती। जिससे लोगों को ध्यान में आए कि यह अपराधी है और अपराध करने वालों को इस प्रकार दण्डित किया जाता है । भविष्य में अन्य कोई ऐसा अपराध न करे, यह अप्रत्यक्ष रूप से लोगों को समझा दिया जाता था । Jain Education International २१५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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