________________
२१४
उत्तराध्ययन सूत्र
६०. इयरो वि गुणसमिद्धो
तिगत्तिगुत्तो तिदण्डविरओ य। विहग इव विष्पमुक्को विहरइ वसुहं विगयमोहो॥
—त्ति बेमि॥
___और वह गुणों से समृद्ध, तीन गुप्तियों से गुप्त, तीन दण्डों से विरत, मोहमुक्त मुनि पक्षी की भाँति विप्रमुक्त-अप्रतिबद्ध होकर भूतल पर विहार करने लगे।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
*
**
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org