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________________ २०८ २४. पिया मे सव्वसारं पि दिज्जाहि मम कारणा । नय दुक्खा विमोएइ एसा मज्झ अणाहया || २५. माया य मे महाराय ! पुसोग हट्टिया । नय दुक्खा विमोएइ एसा मज्झ अणाया ॥ २६. भायरो मे महाराय ! सगा जेट्ट-कणिट्टगा । नय दुक्खा विमोयन्ति एसा मज्झ अणाहया || २७ भइणीओ मे महाराय ! सगा जेट्ट-कणिट्ठगा । न य दुक्खा विमोयन्ति एसा मज्झ अणाहया ॥ २८. भारिया मे महाराय ! अणुरता अणुव्वया । अंसुपुण्णेहिं नयणेहिं उरं मे परिसिंचाई || २९. अन्नं पाणं च पहाणं च गन्ध - मल्ल - विलेवणं । मए नायमणायं वा सा बाला नोवभुंजई ॥ ३०. खणं पि मे महाराय ! पासाओ वि न फिट्टई | न य दुक्खा विमोएइ एसा मज्झ अणाहया ॥ Jain Education International उत्तराध्ययन सूत्र - " मेरे पिता ने मेरे लिए चिकित्सकों को उपहारस्वरूप सर्वसार अर्थात् सर्वोत्तम वस्तुएँ दीं, किन्तु वे मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके । यह मेरी अनाथता है । " के - "महाराज ! मेरी माता पुत्रशोक दुःख से बहुत पीड़ित रहती थी, किन्तु वह भी मुझे दुःख से मुक्त कर सकी, यह मेरी अनाथता है ।" नहीं - “महाराज ! मेरे बड़े और छोटे सभी सगे भाई मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके । यह मेरी अनाथता हैं ।” - "महाराज ! मेरी बड़ी और छोटी सगी बहनें भी मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकीं, यह मेरी अनाथता ।” - "महाराज ! मुझ में अनुरक्त और अनुव्रत मेरी पत्नी अश्रुपूर्ण नयनों से मेरे उरः स्थन (छाती) को भिगोती रहती थी । " ----- - " वह बाला मेरे प्रत्यक्ष में या परोक्ष में कभी भी अन्न, पान, स्नान, गन्ध, माल्य और विलेपन का उपभोग नहीं करती थी । " - " वह एक क्षण के लिए भी मुझ से दूर नहीं होती थी । फिर भी वह मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकी । महाराज ! यही मेरी अनाथता ।” For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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