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२०-महानिर्ग्रन्थीय
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१७. सुणेह मे महाराय !
अवक्खित्तेण चेयसा। जहा अणाहो भवई
जहा मे य पवत्तियं ॥ १८. कोसम्बी नाम नयरी
पुराणपुरभेयणी। तत्थ आसी पिया मज्झ
पभूयधणसंचओ ।। १९. पढमे वए महाराय!
अउला मे अच्छिवेयणा। अहोत्था विउलो दाहो सव्वंगेसु य पत्थिवा!॥
२०. सत्थं जहा परमतिक्खं
सरीरविवरन्तरे। पवेसेज्ज अरी कुद्धो एवं मे अच्छिवेयणा ।।
-"महाराज ! अव्याक्षिप्तअनाकुल चित्तसे मुझे सुनिए कि यथार्थ में अनाथ कैसे होता है, किस भाव से मैंने उसका प्रयोग किया है?"
-"प्राचीन नगरों में असाधारण सुन्दर कौशाम्बी नाम की नगरी है। वहाँ मेरे पिता थे। उनके पास प्रचुर धन का संग्रह था।"
-“महाराज ! प्रथम वय मेंयुवावस्था में मेरी आँखों में अतुल ---असाधारण वेदना उत्पन्न हुई। पार्थिव ! उससे मेरे सारे शरीर में अत्यन्त जलन होती थी।”
-“कुद्ध शत्रु जैसे शरीर के मर्म-स्थानों में अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र घोंपदे और उससे जैसे वेदना हो, वैसे ही मेरी आँखों में भयंकर वेदना हो रही थी।"
-जैसे इन्द्र के वज्रप्रहार से भयंकर वेदना होती है, वैसे ही मेरे त्रिक-कटिभाग में, अन्तरेच्छ-हृदय में और उत्तमांग-मस्तक में अति दारुण वेदना हो रही थी।"
___“विद्या और मंत्र से चिकित्सा करने वाले, मंत्र तथा औषधियों के विशारद, अद्वितीय शास्त्रकुशल, आयुर्वेदाचार्य मेरी चिकित्सा के लिए उपस्थित थे।" __-"उन्होंने मेरे हितार्थ वैद्य, रोगी, औषध और परिचारक-रूप चतुष्पाद चिकित्सा की, किन्तु वे मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके। यह मेरी अनाथता
२१. तियं मे अन्तरिच्छं च
उत्तमंगं च पीडई। इन्दासणिसमा घोरा वेयणा परमदारुणा ॥
२२. उवट्ठिया मे आयरिया
विज्जा-मन्ततिगिच्छगा। अबीया सत्थकुसला मन्त-मूलविसारया।
२३. ते मे तिगिच्छं कुव्वन्ति
चाउप्पायं जहाहियं न य दुक्खा विमोयन्ति एसा मज्झ अणाया॥
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