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उत्तराध्ययन सूत्र
राजा मुनि के इस उत्तर से परेशान हो गया। उसने अपने अपार ऐश्वर्य और विपुल समृद्धि का जिक्र करते हुए, मुनि से कहा-“आप असत्य न बोलें। ये हाथी, ये घोड़े, ये सैनिक, ये महल-सब मेरे हैं, मैं अनाथ कैसे हूँ?”
मुनि ने कहा-“राजन् ! अनाथ और सनाथ की सही परिभाषा तुम नहीं जानते हो। धन-सम्पत्ति और ऐश्वर्य होने मात्र से कोई सनाथ नहीं होता। मैं अपने पिता का प्रिय पुत्र था। पिता के पास ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं थी। परिवार में माँ, भाई, बहन, पत्नी और परिजन सभी थे। किन्तु जिस समय मैं
आँखों की तीव्र वेदना से त्रस्त एवं पीड़ित हो रहा था, उस समय मुझे उस वेदना से कोई बचा नहीं सका। बड़े-से-बड़े चिकित्सक मुझे स्वस्थ नहीं कर सके, अपार ऐश्वर्य मेरे कुछ काम नहीं आया। वह मेरी वेदना को मिटा नहीं सका। मेरा कोई त्राण नहीं था। मुझे कोई बचा नहीं सका, यही मेरी अनाथता थी !”
-“एक दिन रात को शय्या पर पड़े-पड़े मैंने निर्णय किया कि धन, परिजन आदि के ये सब आश्रय झूठे हैं। इन झूठे आश्रयों का भरोसा छोड़ देना ही होगा। इस तमाम परिकरों से मुक्त हुए बिना मुझे शान्ति नहीं प्राप्त होगी। अत: श्रामण्य भाव में उपस्थित होकर दुःख और पीड़ा के बीज को ही मूल से नष्ट कर देना है। कुछ भी हो, प्रभात होते ही मैं सर्वसंग का त्यागी मुनि बन जाऊँगा। राजन् ! मेरा यह संकल्प दृढ़ से दृढ़तर होता गया। कुछ ऐसा योग हुआ कि मेरी वेदना शान्त हो गई। और प्रात:काल होते ही मैं मुनि बन गया।"
-“और जो मुनि बनकर भी उसके अनुरूप आचरण नहीं करता है, वह भी अनाथ है। साधना और साध्य के प्रति जिसकी दृष्टि विपरीत है, उसका बाह्य क्रिया-काण्ड निरर्थक है।”
मुनि की इस स्वानुभूत वाणी से राजा प्रभावित हुआ। राजा ने स्वीकार किया कि वास्तव में, मैं अनाथ हूँ, मुनि सनाथ हैं। राजा ने मुनि से एक महत्त्वपूर्ण तथ्य को जाना, इससे वह प्रसन्न था। परिवार के साथ वह धर्म में
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