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२०-महानिर्ग्रन्थीय
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अनुरक्त हो गया। उसने श्रद्धापूर्वक मुनि को वन्दना की। और अपने द्वारा ध्यान में विक्षेप हो जाने के प्रति विनम्र भाव से क्षमा-याचना की।
उक्त अध्ययन जीवन के एक ऐसे अंश को स्पर्श करता है, जो ऐश्वर्य के कारण अहं से ग्रस्त हो जाता है। बाह्य ऐश्वर्य एवं विभूति कुछ नहीं है। वह मानव की सनाथता के हेतु नहीं हैं। बाहर में सब कुछ पाकर भी मानव अनाथ ही रह जाता है, यदि उसके अन्तर्-मन में विशुद्ध विवेक एवं सच्चे अनासक्त वैराग्य का जागरण नहीं हुआ है, तो।
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