SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९५ १९-मृगापुत्रीय ६७. कुहाड-फरसुमाईहिं वड्डईहिं दुमो विव। कुट्टिओ फालिओ छिन्नो तच्छिओ य अणन्तसो। ६८. चवेडमुट्ठिमाईहिं कुमारेहिं अयं पिव। ताडिओ कुट्टिओ भिन्नो चुण्णिओ य अणन्तसो ॥ -“बढ़ई के द्वारा वृक्ष की तरह कुल्हाड़ी और फरसा आदि से मैं अनन्त बार कूटा गया हूँ, फाड़ा गया हूँ, छेदा गया हूँ, और छीला गया हूँ।" -“लुहारों के द्वारा लोहे की भाँति मैं परमाधर्मी असुर कुमारों के द्वारा चपत और मुक्का आदि से अनन्त बार पीटा गया, कूटा गया, खण्ड-खण्ड किया गया, और चूर्ण बना दिया गया।" —“भयंकर आक्रन्द करते हुए भी मझे कलकलाता गर्म ताँबा, लोहा, रांगा और सीसा पिलाया गया।" ६९. तत्ताइं तम्बलोहाई तउयाइं सीसयाणि य। पाइओ कलकलन्ताई आरसन्तो सुभेरवं ॥ ७०. तुहं पियाइं मंसाइं खण्डाई सोल्लगाणि य। खाविओ मि समंसाई अग्गिवण्णाई णेगसो॥ ७१. तुहं पिया सुरा सीहू मेरओ य महूणि य। पाइओ मि जलन्तीओ वसाओ रुहिराणि य॥ ७२. निच्चं भीएण तत्थेण दुहिएण वहिएण य। परमा दुहसंबद्धा वेयणा वेइया मए॥ ७३. तिव्व-चण्ड-प्पगाढाओ घोराओ अइदुस्सहा। महब्भयाओ भीमाओ नरएसु वेड्या मए। –“तुझे टुकड़े-टुकड़े किया हुआ और शूल में पिरो कर पकाया गया मांस प्रिय था--यह याद दिलाकर मुझे मेरे ही शरीर का मांस काटकर और उसे अग्नि-जैसा लाल तपा कर अनेक बार खिलाया गया।" -"तुझे सुरा, सीधू, मैरेय और मधु आदि मदिराएँ प्रिय थीं—यह याद दिलाकर मुझे जलती हुई चर्बी और खून पिलाया गया।" -“मैंने (पूर्व जन्मों में इस प्रकार) नित्य ही भयभीत, संत्रस्त, दुःखित और व्यथित रहते हुए अत्यन्त दुःखपूर्ण वेदना का अनुभव किया।" -तीव्र, प्रचण्ड, प्रगाढ, घोर, अत्यन्त दु:सह, महाभयंकर और भीष्म वेदनाओं का मैंने नरक में अनुभव किया है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy