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उत्तराध्ययन सूत्र
६०. तण्हाकिलन्तो धावन्तो
पत्तो वेयरणिं नदि। जलं पाहित्ति चिन्तन्तो खुरधाराहिं विवाइओ॥
६१. उपहाभितत्तो संपत्तो
असिपत्तं महावणं। असिपत्तेहिं पडन्तेहि छिन्नपुवो अणेगसो॥
---प्यास से व्याकुल होकर, दौड़ता हुआ मैं वैतरणी नदी पर पहुँचा। 'जल पीऊँगा'-यह सोच ही रहा था कि छुरे की धार जैसी तीक्ष्ण जलधारा से मैं चीरा गया।" ___-“गर्मी से संतप्त होकर मैं छाया के लिए असि-पत्र महावन में गया। किन्तु वहाँ ऊपर से गिरते हुए असि-पत्रों से-तलवार के समान तीक्ष्ण पत्तों से अनेक बार छेदा गया।"
_____“सब ओर से निराश हए मेरे शरीर को मुद्गरों, मण्डियों, शूलों
और मुसलों से चूर-चूर किया गया। इस प्रकार मैंने अनन्त बार दुःख पाया
६२. मुग्गरेहिं मुसंढीहिं
मलेहिं मुसलेहि य। गयासं भग्गगत्तेहि पत्तं दुक्खं अणन्तसो ।।
६३. खुरेहि तिक्खधारेहि
छुरियाहिं कप्पणीहि य। कप्पिओ फालिओ छिन्नो
उक्कत्तो य अणेगसो॥ ६४. पासेहिं कडजालेहिं
मिओ वा अवसो अहं। वाहिओ बद्धरुद्धो अ बहुसो चेव विवाइओ॥
-"तेज धार वाले छुरों से, छुरियों से तथा कैंचियों से मैं अनेक बार काटा गया हूँ, टुकड़े-टुकड़े किया गया हूँ, छेदा गया हूँ तथा मेरी चमड़ी उतारी गई है।" ___“पाशों और कूट जालों से विवश बने मृग की भाँति मैं भी अनेक बार छलपूर्वक पकड़ा गया हूँ, बाँधा गया हूँ, रोका गया हूँ और विनष्ट किया गया हूँ।"
-“गलों से—मछली को फँसाने के काँटों से तथा मगरों को पकड़ने के जालों से मत्स्य की तरह विवश मैं अनन्त बार खींचा गया, फाड़ा गया, पकड़ा गया, और मारा गया।"
___“बाज पक्षियों, जालों तथा वज्रलेपों के द्वारा पक्षी की भाँति मैं अनन्त बार पकड़ा गया, चिपकाया गया, बाँधा गया और मारा गया।"
६५. गलेहिं मगरजालेहि
मच्छो वा अवसो अहं। उल्लिओ फालिओ गहिओ मारिओ य अणन्तसो ।
६६.
वीदंसएहि जालेहि लेप्पाहि सउणो विव। गहिओ लग्गो बद्धो य मारिओ य अणन्तसो॥
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