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________________ १९२ उत्तराध्ययन सूत्र - “मैंने नरक आदि चार गतिरूप अन्त वाले जरा-मरण रूपी भय के आकर कान्तार (संसार वन) में भयंकर जन्म-मरणों को सहा है।" ४८. ४७. जरा-मरणकन्तारे चाउरन्ते भयागरे। मए सोढाणि भीमाणि जम्माणि मरणाणि य ।। जहा इहं अगणी उण्हो एत्तोऽणन्तगुणे तहिं। नरएसु वेयणा उण्हा अस्साया वेइया मए । ४९. जहा इमं इहं सीयं एत्तोऽणंत्तगुणं तहि। नरएसु वेयणा सीया अस्साया वेइया मए॥ ___-“जैसे यहाँ अग्नि उष्ण है, उससे अनन्तगुण अधिक दुःखरूप उष्ण वेदना मैंने नरक में अनुभव की है।" -“जैसे यहाँ शीत है, उससे अनन्त गुण अधिक दुःखरूप शीतवेदना मैंने नरक में अनुभव की है।" ५०. कन्दन्तो कंदुकुम्भीसु उड्डपाओ अहोसिरो। हुयासणे जलन्तम्मि पक्कपुवो अणन्तसो ॥ ____“मैं नरक की कंदु कुम्भियों में—पकाने के लौहपात्रों में ऊपर पैर और नीचे सिर करके प्रज्वलित अग्नि में आक्रन्द करता हुआ अनन्त बार पकाया गया हूँ।" ५१. महादवग्गिसंकासे मरुम्मि वइरवालुए। कलम्बवालुयाए य द ड्पुव्वो अणन्तसो॥ -"महाभयंकर दावाग्नि के तुल्य मरु प्रदेश में, तथा वज्रवालुका (वज्र के समान कर्कश कंकरीली रेत) में और कदम्ब वालुका (नदी के पुलिन की तप्त बाल रेत) में मैं अनन्त बार जलाया गया हूँ।" ___“बन्धु-बान्धवों से रहित असहाय रोता हुआ मैं कन्दुकुम्भी में ऊँचा बाँधा गया तथा करपत्र-करवत और क्रकच-आरा आदि शस्त्रों से अनन्त बार छेदा गया हूँ।" ५२. रसन्तो कंदुकुम्भीसु उड़े बद्धो अबन्धवो। करवत्त-करकयाईहिं छिन्नपुवो अणन्तसो॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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