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उत्तराध्ययन सूत्र
२०. एवं धम्मं अकाऊणं
जो गच्छइ परं भवं। गच्छन्तो सो दुही होइ
वाहीरोगेहिं पीडिओ॥ २१. अद्धाणं जो महन्तं तु
सपाहेओ पवज्जई। गच्छन्तो सो सुही होइ
छुहा-तण्हाविवज्जिओ॥ २२. एवं धम्मं पि काऊणं
जो गच्छइ परं भवं। गच्छन्तो सो सुही होइ
अप्पकम्मे अवेयणे॥ २३. जहा गेहे पलित्तम्मि
तस्स गेहस्स जो पहू। सारभण्डाणि नीणेइ असारं अवउज्झइ॥
- “इसी प्रकार जो व्यक्ति धर्म किए बिना परभव में जाता है, वह जाते हुए व्याधि और रोगों से पीड़ित होता है, दुःखी होता है।"
-"जो व्यक्ति पाथेय साथ में लेकर लम्बे मार्ग पर चलता है, वह चलते हए भूख और प्यास के दुःख से रहित सुखी होता है।" ____“इसी प्रकार जो व्यक्ति धर्म करके परभव में जाता है, वह अल्पकर्मा जाते हुए वेदना से रहित सुखी होता है।”
____जिस प्रकार घर को आग लगने पर गृहस्वामी मूल्यवान् सार वस्तुओं को निकालता है और मूल्यहीन असार वस्तुओं को छोड़ देता
२४. एवं लोए पलित्तम्मि
जराए मरणेण य। अप्पाणं तारइस्सामि तुब्भेहि अणुमन्निओ॥
____उसी प्रकार आपकी अनुमति पाकर जरा और मरण से जलते हुए इस लोक में से सारभूत अपनी आत्मा को बाहर निकालूँगा।"
माता-पिता
-माता-पिता ने उसे कहा“पुत्र ! श्रामण्य—मुनिचर्या अत्यन्त दुष्कर है । भिक्षु को हजारों गुण अर्थात् नियमोप नियम धारण करने होते
२५. तं बिंत ऽम्मापियरो
सामण्णं पुत्त! दुच्चरं। गुणाणं तु सहस्साई धारेयव्वाइं भिक्खुणो॥
२६. समया सव्वभूएसु
सत्तुमित्तेसु वा जगे। पाणाइवायविरई जावज्जीवाए दुक्करं ॥
___“भिक्ष को जगत् में शत्र और मित्र के प्रति यहाँ तक कि सभी जीवों के प्रति समभाव रखना होता है। जीवन-पर्यन्त प्राणातिपात से निवृत्त होना भी बहुत दुष्कर है।"
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