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________________ १८० उत्तराध्ययन सूत्र -“साक्षात् देवेन्द्र से प्रेरित होने पर भी विदेह के राजा नमि श्रामण्य धर्म में भली-भाँति स्थिर हुए, अपने को अति विनम्र बनाया।" -"कलिंग में करकण्ड, पांचाल में द्विमुख, विदेह में नमि राजा और गन्धार में नग्गति" ४५. नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही सामण्णे पज्जुवट्ठिओ॥ ४६. करकण्डू कलिंगेसु पंचालेसु य दुम्मुहो। नमी राया विदेहेसु गन्धारेसु य नग्गई। ४७. एए नरिन्दवसभा निक्खन्ता जिणसासणे। पुत्ते रज्जे ठविताणं सामण्णे पज्जुवट्ठिया॥ सोवीररायवसभो चेच्चा रज्जं मुणी चरे। उद्दायणो पव्वइओ पत्तो गइमणुत्तरं ।। -“राजाओं में वृषभ के समान महान् थे। इन्होंने अपने-अपने पुत्र को राज्य में स्थापित कर श्रामण्य धर्म स्वीकार किया।" -"सौवीर राजाओं में वृषभ के समान महान् उद्रायण राजा ने राज्य को छोड़कर प्रव्रज्या ली, मुनि-धर्म का आचरण किया और अनुत्तर गति प्राप्त की।" ___“इसी प्रकार श्रेय और सत्य में पराक्रमशील काशीराज ने काम-भोगों का परित्याग कर कर्मरूपी महावन का नाश किया।" —“इसी प्रकार अमरकीर्ति, महान् यशस्वी विजय राजा ने गुण-समृद्ध राज्य को छोड़कर प्रव्रज्या ली।" ४९. तहेव कासीराया सेओ-सच्चपरक्कमे। कामभोगे परिच्चज्ज पहणे कम्ममहावणं॥ ५०. तहेव विजओ राया अणट्ठाकित्ति पव्वए। रज्जं तु गुणसमिद्धं पयहित्तु महाजसो॥ ५१. तहेवुग्गं तवं किच्चा अव्वक्खित्तेण चेयसा। महाबलो रायरिसी अद्दाय सिरसा सिरं ॥ -"इसी प्रकार अनाकुल चित्त से उग्र तपश्चर्या करके राजर्षि महाबल ने शिर देकर शिर प्राप्त किया-अर्थात् अहंकार का विसर्जन कर सिद्धिरूप उच्च पद प्राप्त किया। अथवा सिद्धिरूप श्री प्राप्त की।” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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