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उत्तराध्ययन सूत्र
-“साक्षात् देवेन्द्र से प्रेरित होने पर भी विदेह के राजा नमि श्रामण्य धर्म में भली-भाँति स्थिर हुए, अपने को अति विनम्र बनाया।"
-"कलिंग में करकण्ड, पांचाल में द्विमुख, विदेह में नमि राजा और गन्धार में नग्गति"
४५. नमी नमेइ अप्पाणं
सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही
सामण्णे पज्जुवट्ठिओ॥ ४६. करकण्डू कलिंगेसु
पंचालेसु य दुम्मुहो। नमी राया विदेहेसु
गन्धारेसु य नग्गई। ४७. एए नरिन्दवसभा
निक्खन्ता जिणसासणे। पुत्ते रज्जे ठविताणं सामण्णे पज्जुवट्ठिया॥ सोवीररायवसभो चेच्चा रज्जं मुणी चरे। उद्दायणो पव्वइओ पत्तो गइमणुत्तरं ।।
-“राजाओं में वृषभ के समान महान् थे। इन्होंने अपने-अपने पुत्र को राज्य में स्थापित कर श्रामण्य धर्म स्वीकार किया।"
-"सौवीर राजाओं में वृषभ के समान महान् उद्रायण राजा ने राज्य को छोड़कर प्रव्रज्या ली, मुनि-धर्म का आचरण किया और अनुत्तर गति प्राप्त की।"
___“इसी प्रकार श्रेय और सत्य में पराक्रमशील काशीराज ने काम-भोगों का परित्याग कर कर्मरूपी महावन का नाश किया।"
—“इसी प्रकार अमरकीर्ति, महान् यशस्वी विजय राजा ने गुण-समृद्ध राज्य को छोड़कर प्रव्रज्या ली।"
४९. तहेव कासीराया
सेओ-सच्चपरक्कमे। कामभोगे परिच्चज्ज
पहणे कम्ममहावणं॥ ५०. तहेव विजओ राया
अणट्ठाकित्ति पव्वए। रज्जं तु गुणसमिद्धं
पयहित्तु महाजसो॥ ५१. तहेवुग्गं तवं किच्चा
अव्वक्खित्तेण चेयसा। महाबलो रायरिसी अद्दाय सिरसा सिरं ॥
-"इसी प्रकार अनाकुल चित्त से उग्र तपश्चर्या करके राजर्षि महाबल ने शिर देकर शिर प्राप्त किया-अर्थात् अहंकार का विसर्जन कर सिद्धिरूप उच्च पद प्राप्त किया। अथवा सिद्धिरूप श्री प्राप्त की।”
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