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अट्ठारसमंअज्झयणंः अठारहवाँ अध्ययन
संजइज्जं : संजयीय
मूल १. कम्पिल्ले नयरे राया
उदिण्णबल - वाहणे। नामेणं संजए नाम मिगव्वं उवणिग्गए। हयाणीए गयाणीए रहाणीए तहेव य। पायत्ताणीए महया सव्वओ परिवारिए। मिए छुभित्ता हयगओ कम्पिल्लुज्जाणकेसरे। भीए सन्ते मिए तत्थ वहेइ रसमुच्छिए।
हिन्दी अनुवाद ___ काम्पिल्य नगर में सेना और वाहन से सुसंपन्न 'संजय' नाम का राजा था। एक दिन वह मृगव्या-अर्थात् मृगया-शिकार के लिए निकला।
वह राजा सब ओर से विशाल अश्वसेना, गजसेना, रथसेना तथा पदाति सेना से परिवृत था।
राजा अश्व पर आरूढ़ था। वह रस-मूच्छित होकर काम्पिल्य नगर के केशर उद्यान की ओर ढकेले गए भयभीत एवं श्रान्त हिरणों को मार रहा था।
४. अह केसरम्मि उज्जाणे
अणगारे तवोधणे। सज्झाय-ज्झाणसंजुत्ते धम्मज्झाणं झियायई॥ अप्फोवमण्डवम्मि झायई झवियासवे। तस्सागए मिए पासं वहेई से नराहिवे॥
उस केशर उद्यान में एक तपोधन अनगार स्वाध्याय एवं ध्यान में लीन थे, धर्मध्यान की एकाग्रता साध रहे थे।
आश्रव का-कर्मबन्ध के रागादि हेतुओं का क्षय करने वाले अनगार अप्फोवमण्डप-लतामण्डप में ध्यान कर रहे थे। उनके समीप आए हिरणों का राजा ने बध कर दिया था।
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