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: ८ : भाष्य की गणना भी मूल सूत्र में है। इस पर शान्ति सूरि ने प्राकृत में एक विस्तृत टीका लिखी है। इस पर एक लघुभाष्य भी लिखा गया है, जिसकी गाथाएँ इसकी नियुक्ति में मिश्रित हो गई हैं। इसमें बोटिक की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है। पाँच प्रकार के निर्ग्रन्थों का स्वरूप बतलाया गया है। वे पाँच भेद इस प्रकार से हैं-पुलाक, वकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक । प्रसंगवश अन्य वर्णन भी किए गए हैं, जो बहुत सुन्दर हैं। उत्तराध्ययन चूर्णि :
नियुक्ति और भाष्य की भाँति चूर्णि भी आगमों की व्याख्या है। परन्तु यह पद्य न होकर गद्य में होती है। केवल प्राकृत में न होकर प्राकृत और संस्कृत-- दोनों में होती है। चूर्णियों की भाषा सरल और सुबोध्य होती है। चूर्णियों का रचनासमय लगभग ७वी-८वीं शती है। चूर्णिकारों में जिनदास महत्तर का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इनका समय विक्रम की ७वीं शती माना जाता है। चूर्णिकारों में सिद्धसेन सूरी, प्रलम्ब सूरी और अगस्त्यसेन सूरी का नाम विशेष उल्लेखनीय है। उत्तराध्ययन-चूर्णि जिनदास महत्तर की एक सुन्दर कृति है। यह बहुत विस्तृत नहीं है। संस्कृत और प्राकृत मिश्रित भाषा होने से समझने में अत्यन्त सुगम है। कहीं-कहीं प्रसंगवश इसमें तत्त्व-चर्चा और लोक-चर्चा भी उपलब्ध होती है। उत्तराध्ययन टीका :
प्राकृत युग में मूल आगम, नियुक्ति और भाष्यों का ग्रन्थन हआ। चर्णियों में प्रधानता प्राकृत की होने पर भी उसमें संस्कृत का प्रवेश हो चुका था। संस्कृत युग में प्रधानरूप से टीकाओं की रचना हुई। आगम-साहित्य में चूर्णि-युग के बाद में संस्कृत-टीकाओं का युग आया। टीका के अर्थ में इतने शब्दों का प्रयोग होता रहा है-नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, विवृति, वृत्ति, विवरण, विवेचना, अवचूरि, अवचूर्णि, दीपिका, व्याख्या, पंजिका, विभाषा और छाया। संस्कृत टीकाकारों में आचार्य हरिभद्र का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने प्राकृत चूर्णियों के आधार से टीका की। हरिभद्र के बाद में आचार्य शीलांक ने संस्कृत टीकाएँ लिखीं। आचारांग और सूत्र कृतांग पर इनकी विस्तृत और महत्त्वपूर्ण टीकाएँ हैं, जिनमें दार्शनिकता की प्रधानता है। मलधारी हेमचन्द्र भी प्रसिद्ध टीकाकार हैं। परन्तु संस्कृत टीकाकारों में सबसे विशिष्ट स्थान आचार्य मलयगिरि का है। आचार्य शान्ति सूरी ने उत्तराध्ययन पर विस्तृत टीका लिखी है। यह प्राकृत और संस्कृत दोनों में है। परन्तु प्राकृत की प्रधानता है, अत: इसका नाम 'पाइय' टीका प्रसिद्ध है। इसमें धर्म और दर्शन का अति सूक्ष्म विवेचन हुआ है । आगमों के टीकाकारों में अभय देव सूरी भी एक सुप्रसिद्ध टीकाकार हैं। अभयदेव सूरी को नवांगी
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