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वृत्तिकार कहा जाता है । उत्तराध्ययन सूत्र पर जिन आचार्यों ने संस्कृत टीकाएँ लिखी हैं, उनमें मुख्य ये हैं- वादिवेताल शान्तिसूरी, नेमिचन्द्र, कमलसंयम, लक्ष्मी वल्लभ, भावविजय, हरिभद्र, मलयगिरि, तिलकाचार्य, कोट्याचार्य, नमि साधु और माणिक्य शेखर । जैन आगमों में सबसे अधिक टीकाएँ उत्तराध्ययन पर ही लिखी गई हैं। यही कारण है, कि उत्तराध्ययन सूत्र जैन परंपरा में अत्यन्त प्रिय और अत्यन्त प्रसिद्ध रहा है ।
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गीता, उत्तराध्ययन, धम्मपद :
जिस प्रकार समस्त उपनिषदों का सार गीता में संचित कर दिया गया है, जिस प्रकार समस्त बुद्धवाणी का सार धम्मपद में संगृहीत कर दिया गया है, उसी प्रकार भगवान् महावीर की वाणी का समग्र निस्यन्द एवं सार उत्तराध्ययन सूत्र में गुम्फित किया गया है । भगवान् महावीर के विचार, विश्वास और आचार का एक भी दृष्टिकोण इस प्रकार का नहीं है, जो उत्तराध्ययन सूत्र में न आ गया हो। इसमें धर्म - कथानक भी हैं, उपदेश भी हैं, त्याग एवं वैराग्य की धाराएँ भी प्रवाहित हो रही हैं। धर्म और दर्शन का सुन्दर समन्वय इसमें भली-भाँति परिलक्षित होता है । ज्ञान, दर्शन और चारित्र - तीनों का सुन्दर संगम हुआ है 1
प्रस्तुत प्रकाशन :
उत्तराध्ययन सूत्र का प्रस्तुत - प्रकाशन अत्यंत ही सुन्दर है। इसमें विशेषता यह है, कि एक ओर मूल है, और ठीक उसके सामने उसका अनुवाद दिया गया है । स्वाध्याय प्रेमी मूल पाठ कर सकता है, और अर्थ जानने वाला व्यक्ति सीधा अर्थ भी पढ़ सकता है | अनुवाद की भाषा और शैली आकर्षक एवं सुन्दर है I महाविदुषी दर्शनाचार्य श्री चन्दना जी ने इसके अनुवादन एवं लेखन में खूब ही परिश्रम किया है, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है। उनकी दार्शनिक बुद्धि ने यथाप्रसंग और यथास्थल शब्दों के मार्मिक अर्थ दिए हैं। प्रसन्नता है, कि साध्वी समाज में यह पहला अवसर है, कि एक साध्वी उत्तराध्ययन सूत्र का सुन्दर सम्पादन प्रस्तुत किया है। अभी तक चन्दना जी वक्तृत्व कला में ही प्रसिद्ध थीं, पर इस प्रकाशन से लेखन के क्षेत्र में भी वे प्रवेश पा रही हैं ।
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