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उत्तराध्ययन सूत्र
सूत्र ४-नो इत्थीणं कह
जो स्त्रियों की (रूप, लावण्य आदि कहित्ता हवइ, से निग्गन्थे।
से सम्बन्धित) कथा नहीं करता है, वह
निर्ग्रन्थ है। तं कहमिति चे? ऐसा क्यों? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु
आचार्य कहते हैं जो स्त्रियों की इत्थीणं कहं कहेमाणस्स,
कथा करता है, उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा कंखा वा वितिगिच्छा वा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, अथवा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा ब्रह्मचर्य का विनाश होता है, अथवा उम्मायं वा पाउणिज्जा,
उन्माद पैदा होता है, अथवा दीर्घदीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, कालिक रोग और आतंक होता है, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ अथवा वह केवली प्ररूपित धर्म से भंसेज्जा!
भ्रष्ट होता है। अत: निर्ग्रन्थ स्त्रियों की तम्हा नो इत्थीणं कहं कहेज्जा। कथा न करे। सूत्र ५-नो इत्थीहिं सद्धि
जो स्त्रियों के साथ एक आसन पर सन्निसेज्जागए विहरित्ता
नहीं बैठता है, वह निर्ग्रन्थ है। हवइ से निग्गन्थे।
तं कहमिति चे? ऐसा क्यों? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु
आचार्य कहते हैं-जो स्त्रियों के इत्थीहिं सद्धिं
साथ एक आसन पर बैठता है, उस सन्निसेज्जागयस्स,
ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य के विषय में बम्भयारिस्स बम्भचेरे
शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न संका वा, कंखा वा,
होती है, अथवा ब्रह्मचर्य का विनाश वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, होता है, अथवा उन्माद पैदा होता है, भेयं वा लभेज्जा,
अथवा दीर्घकालिक रोग और आतंक उम्मायं वा पाउणिज्जा,
होता है, अथवा वह केवली प्ररूपित दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, धर्म से भ्रष्ट होता है। अत: निर्ग्रन्थ केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। स्त्रियों के साथ एक आसन पर न तम्हा खलु नो निग्गन्थे
बैठे। इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेजागए विहरेज्जा।
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