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उत्तराध्ययन सूत्र
१६. असिप्पजीवी अगिहे अमित्ते जो शिल्पजीवी नहीं है, जिसका
जिइन्दिए सव्यओ विष्पमुक्के। कोई गृह नहीं है, जिसके अभिष्वंग के अणुक्कसाई लहुअप्पभक्खी हेतु मित्र नहीं हैं, जो जितेन्द्रिय है, जो चेच्चा गिहं एगचरे स भिक्ख ॥ सब प्रकार के परिग्रह से मुक्त है, जो
अणुकषायी है अर्थात् जिसके क्रोधादि कषाय मन्द हैं, जो नीरस और परिमित आहार लेता है, जो गृहवास छोड़कर एकाकी विचरण करता है, वह भिक्षु
–त्ति बेमि।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
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