________________
१४०
उत्तराध्ययन सूत्र
३५. छिन्दित्तु जालं अबलं व रोहिया “रोहित मत्स्य जैसे कमजोर जाल
मच्छा जहा कामगुणे पहाय। को काटकर बाहर निकल जाते हैं, वैसे धोरेयसीला तवसा उदारा ही धारण किए हुए गुरुतर संयमभार धीरा हु भिक्खायरियं चरन्ति ॥ को वहन करने वाले प्रधान तपस्वी
धीर साधक कामगुणों को छोड़कर भिक्षाचर्या को स्वीकार करते हैं।"
पुरोहित-पत्नी३६. जहेव कुंचा समइक्कमन्ता -“जैसे क्रौंच पक्षी और हंस
तयाणि जालाणि दलित्तु हंसा। बहेलियों द्वारा प्रसारित जालों को पलेन्ति पत्ता य पई य मज्झं काटकर आकाश में स्वतन्त्र उड़ जाते ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्का ? हैं, वैसे ही मेरे पुत्र और पति
भी छोड़कर जा रहे हैं। पीछे मैं अकेली रह कर क्या करूँगी? मैं भी क्यों न उनका अनुगमन करूँ?”
३७. पुरोहियं तं ससुयं सदारं -“पुत्र और पत्नी के साथ
सोच्चाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए। पुरोहित ने भोगों को त्याग कर कुडुंबसारं विउलुत्तमं तं अभिनिष्क्रण किया है”—यह सुनकर रायं अभिक्खं समुवाय देवी।। उस कुटुम्ब की प्रचुर और श्रेष्ठ
__ धनसंपत्ति की चाह रखने वाले
राजा को रानी कमलावती ने कहा
३८. वन्तासी पुरिसो रायं!
न सो होइ पसंसिओ। माहणेण परिच्चत्तं धणं आदाउमिच्छसि ।।
रानी कमलावती
-"तुम ब्राह्मण के द्वारा परित्यक्त धन को ग्रहण करने की इच्छा रखते हो। राजन् ! वमन को खाने वाला पुरुष प्रशंसनीय नहीं होता है।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org