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________________ १३८ उत्तराध्ययन सूत्र २६. एगओ संवित्ताणं दुहओ सम्मत्तसंजुया। पच्छा जाया! गमिस्सामो भिक्खमाणा कुले कुले ॥ पिता —“पुत्रो, पहले हम सब कुछ समय एक साथ रह कर सम्यक्त्व और व्रतों से युक्त हों अर्थात उनका पालन करें। पश्चात् ढलती आयु में दीक्षित होकर घर-घर से भिक्षा ग्रहण करते हुए विचरेंगे।" २७. जस्सत्यि मच्चुणा सक्खं जस्स वऽस्थि पलायणं। जो जाणे न मरिस्सामि सो हु कंखे सुए सिया।। ____“जिसकी मृत्यु के साथ मैत्री है, जो मृत्यु के आने पर दूर भाग सकता है, अथवा जो यह जानता है कि मैं कभी मरूँगा ही नहीं, वही आने वाले कल की आकांक्षा (भरोसा) कर सकता २८. अज्जेव धम्म पडिवज्जयामो -“हम आज ही राग को दूर जहिं पवना न पुणब्भवामो। करके श्रद्धा से युक्त मुनिधर्म को अणागयं नेव य अस्थि किंचि स्वीकार करेंगे, जिसे पाकर पुन: इस सद्धाखमं णे विणइत्तु रागं॥ संसार में जन्म नहीं लेना होता है। हमारे लिए कोई भी भोग अनागतअभुक्त नहीं है, क्योंकि वे अनन्त बार भोगे जा चुके हैं।" प्रबुद्ध पुरोहित२९. पहीणपुत्तस्स हु नस्थि वासो –“वाशिष्ठि ! पुत्रों के बिना इस वासिट्टि ! भिक्खायरियाइ कालो। घर में मेरा निवास नहीं हो सकता है। साहाहि रुक्खो लहए समाहिं भिक्षाचर्या का काल आ गया है। वृक्ष छिन्नाहि साहाहि तमेव खाणं॥ शाखाओं से ही सुन्दर लगता है। ' शाखाओं के कट जाने पर वह केवल ठूठ कहलाता है।" ३०. पंखाविहणो ब्व जहेह पक्खी -“पंखों से रहित पक्षी, युद्ध में भिच्चा विहणो ब्व रणे नरिन्दो। सेना से रहित राजा, जलपोत (जहाज) विवन्नसारो वणिओ व्व पोए पर धन-रहित व्यापारी जैसे असहाय पहीणपुत्तो मि तहा अहं पि॥ होता है वैसे ही पुत्रों के बिना मैं भी असहाय हूँ।” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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