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१४ - इषुकारीय
२१. अब्भाहयंमि सव्वओ अमोहाहिं गिहंसि न रई
२२. केण अब्भाहओ लोगो ? केण वा परिवारिओ ? का वा अमोहा वृत्ता ?
जाया ! चिंतावरो हुमि ||
लोगंमि परिवारिए ।
पडतीहिं लभे ।
२३. मच्चुणाऽब्भाहओ लोगो
परिवारिओ । रयणी वुत्ता
एवं ताय ! वियाणह ॥
जराए
अमोहा
२४. जा जा वच्चइ रयणी
न सा पडिनियत्तई । अहम्मं अफला जन्ति राइओ ||
कुणमाणस्स
२५. जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई । धम्मं च कुणमाणस्स सफला जन्ति राइओ ||
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- " लोक आहत ( पीड़ित ) है । चारों तरफ से घिरा है। अमोघा आ रही हैं । इस स्थिति में हम घर में
सुख नहीं पा रहे हैं ।”
पिता
-“ पुत्रो ! यह लोक किससे आहत है ? किससे घिरा हुआ है ? अमोघा किसे कहते हैं ? यह जानने के लिए मैं चिन्तित हूँ ।”
पुत्र
- " पिता ! आप अच्छी तरह जान लें कि यह लोक मृत्यु से आहत है, जरा से घिरा हुआ है । और रात्रि ( समयचक्र की गति) को अमोघा (कभी न रुकने वाली ) कहते हैं । "
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-" जो जो रात्रि जा रही है, वह फिर लौट कर नहीं आती है । अधर्म करने वाले की रात्रियाँ निष्फल जाती हैं।”
–“जो जो रात्रि जा रही है, वह फिर लौट कर नहीं आती है । धर्म करने वाले की रात्रियाँ सफल होती
हैं ।”
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