________________
१२४
उत्तराध्ययन सूत्र
मुनि१६. सव्वं विलवियं गीयं -“सब गीत-गान विलाप हैं।
सव्वं नट्ट विडम्बियं। समस्त नाट्य विडम्बना हैं। सब सव्वे आभरणा भारा आभरण भार हैं। और समग्र
सव्वे कामा दुहावहा । काम-भोग दुःखप्रद हैं।" । १७. बालाभिरामेसु दुहावहेसु -“अज्ञानियों को सुन्दर दिखने
न तं सुहं कामगुणेसु रायं! वाले, किन्तु वस्तुत: दुःखकर कामभोगों विरत्तकामाण तवोधणाणं में वह सुख नहीं है, जो सुख शीलगुणों जं भिक्खुणं शीलगुणे रयाणं ॥ में रत, कामनाओं से निवृत्त तपोधन
भिक्षुओं को है।” १८. नरिंद! जाई अहमा नराणं -हे नरेन्द्र ! मनुष्यों में जो
सोवागजाई दहओ गयाणं। चाण्डाल जाति अधम जाति मानी जाती जहिं वयं सव्वजणस्स वेस्सा है, उसमें हम दोनों उत्पन्न हो चुके हैं, वसीय सोवाग-निवेसणेस॥ चाण्डालों की बस्ती में हम दोनों रहते
थे, जहाँ सभी लोग हमसे द्वेष (घृणा) करते थे।"
१९. तीसे य जाईइ उ पावियाए –“निन्दनीय चाण्डाल जाति में
वुच्छामु सोवागनिवेसणेसु॥ हमने जन्म लिया था और उन्हीं के सव्वस्स लोगस्स दुगंछणिज्जा बस्ती में हम दोनों रहे थे। तब सभी इहं तु कम्माइं पुरेकडाइं ॥ लोग हमसे घृणा करते थे। अत: यहाँ
जो श्रेष्ठता प्राप्त है, वह पूर्व जन्म के
शुभ कर्मों का फल है।” २०. सो दाणिसिं राय! महाणुभागो -"पूर्व शुभ कर्मों के फलस्वरूप
महिडिओ पुण्णफलोववेओ। इस समय वह (पूर्व जन्म में निन्दित) तू चइत्तु भोगाइं असासयाई अब महानुभाग, महान् ऋद्धिवाला राजा आयाणहेडं अभिणिक्खमाहि ।। बना है। अत: तू क्षणिक भोगों को
छोड़कर.आदान-अर्थात् चारित्र धर्म का आराधना के हेतु अभिनिष्क्रमण कर ।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org