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________________ १३ - चित्र - सम्भूतीय ११९ - ब्रह्मदत्त एक बार नाटक देख रहा था । नाटक देखते-देखते उसे जातिस्मरण हुआ और वह अपने छह जन्म के साथी चित्र की स्मृति में शोकविह्वल हो गया । पूर्व जन्मों की स्मृति के अनुसार चक्रवर्ती ने श्लोक का पूर्वार्ध तैयार कर लिया “ आस्व दासौ मृगौ हंसौ, मातंगावमरौ तथा । " श्लोक के उत्तरार्ध की पूर्ति के लिए राजा ने घोषणा की कि जो भी कोई इस श्लोक का उत्तरार्ध पूरा करेगा उसे आधा राज्य दूँगा । पर कौन पूरा करता ? किसे पता था इस रहस्य का ? श्लोक का पूर्वार्ध प्रायः हर किसी जुबान पर था, किन्तु किसी से कुछ बन नहीं पा रहा था । चित्र का जन्म पुरिमताल नगर के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। उन्हें भी जातिस्मरण हुआ और वे मुनि बन गए। एक बार वे विहार करते हुए कांपिल्य नगर के एक उद्यान में आकर ध्यानस्थ खड़े हो गए। वहाँ उक्त श्लोक का पूर्वार्ध कोई अरघट्टचालक जोर-जोर से बोल रहा था। मुनि ने सुना और उसे पूरा कर दिया “ एषा नौ षष्ठिका जातिः अन्योन्याभ्यां वियुक्तयोः ।” अब क्या था, रँहट चालक ने ज्यों ही यह पूर्ति सुनी तो वह तत्क्षण चक्रवर्ती के पास पहुँचा, निवेदन किया । पूर्ति का भेद खुलने पर ब्रह्मदत्त स्वयं चल कर चित्रमुनि के पास गया। और दोनों ने एक दूसरे से बातें कीं । ब्रह्मदत्त ने बार-बार चित्रमुनि को सांसारिक सुखों के लिए आमन्त्रण दिया और मुनि ने ब्रह्मदत्त को भोगासक्ति से विरक्त होने के लिए समझाने का प्रयत्न किया। मुनि ने कहा कि - " पूर्व जन्म के शुभ कर्मों से हम यहाँ तक आए हैं। अब हमें अपनी जीवनयात्रा को सही दिशा देनी है । संसार के घोर जंगल में अब न भटक जायँ, इसके लिए प्रयत्न करना है । मोह के सब रिश्ते झूठे हैं। जो कहते हैं - मैं तुम्हारा हूँ, वे न दुःख के समय साथ देते हैं, न मृत्यु के समय । उनके मिथ्या विश्वास पर हमें शुभ कार्यों को नहीं छोड़ना चाहिए ।" अन्त में ब्रह्मदत्त कहते हैं-- “ मैं आपकी बात को अच्छी तरह समझता हूँ, किन्तु क्या करूँ, निदान के कारण मैं इसे छोड़ नहीं सकता हूँ। मैं तो दल-दल में फँसा हुआ वह हाथी हूँ, जो तट को देखकर भी तट तक जा नहीं सकता । " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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