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उत्तराध्ययन सूत्र
३०. ते पासिया खण्डिय कट्ठभूए इस प्रकार छात्रों को काठ की तरह
विमणो विसण्णो अह माहणो सो निश्चेष्ट देख कर वह उदास और इसिं पसाएइ सभारियाओ भयभीत ब्राह्मण अपनी पत्नी को साथ हीलं च निन्दं च खमाह भन्ते ॥ लेकर मुनि को प्रसन्न करने
लगा--" भन्ते ! हमने जो आप की अवहेलना और निन्दा की है, उसे क्षमा करें।"
३१. बालेहिं मूढेहिं अयाणएहिं -“भन्ते ! मूढ़ अज्ञानी बालकों
जं हीलिया तस्स खमाह भन्ते! ने आपकी जो अवहेलना की है, आप महप्पसाया इसिणो हवन्ति। उन्हें क्षमा करें। ऋषिजन महान् न हु मुणी कोवपरा हवन्ति ॥ प्रसन्नचित्त होते हैं, अत: वे किसी पर
क्रोध नहीं करते हैं। ३२. पुट्विं च इण्हि च अणागयं च मुनि
मणप्पदोसो न मे अत्थि कोइ। -“मेरे मन में न कोई द्वेष पहले जक्खा हु वेयावडियं करेन्ति __ था, न अब है, और न आगे भविष्य में तम्हा हु एए निहया कुमारा॥ ही होगा। यक्ष सेवा करते हैं, उन्होंने
ही कुमारों को प्रताड़ित किया है।"
रुद्रदेव३३. अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा ____“धर्म और अर्थ को यथार्थ
तूब्मे न वि कुप्पह भूइपन्ना। रूप से जानने वाले भूतिप्रज्ञ (रक्षाप्रधान तुब्भं तु पाए सरणं उवेमो मंगल बुद्धि से युक्त) आप क्रोध नहीं समागया सव्वजणेण अम्हे॥ करते हैं। हम सब मिलकर आपके
चरणों में आए हैं, शरण ले रहे हैं।" ३४. अच्चे ते महाभाग! -महाभाग! हम आपकी
न ते किंचि न अच्चिमो। अर्चना करते हैं। आपका ऐसा कुछ भी भुंजाहि सालिमं करं नहीं है, जिसकी हम अर्चना न करें। नाणावंजण-संजुयं ॥ अब आप दधि आदि नाना व्यंजनों से
मिश्रित शालि-चावलों से निष्पन्न भोजन खाइए।"
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