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उत्तराध्ययन सूत्र
२०. रन्नो तहिं कोसलियस्स ध्या
भद्द त्ति नामेण अणिन्दियंगी। तं पासिया संजय हम्ममाणं कुद्धे कुमारे परिनिव्ववेइ ।।
राजा कौशलिक की अनिन्द्य सुंदरी कन्या भद्रा ने मुनि को पिटते देखकर क्रुद्ध कुमारों को रोका।
२१. देवाभिओगेण निओइएणं भद्रा
दिन्ना मु रन्ना मणसा न झाया। “देवता की बलवती प्रेरणा से राजा नरिन्द-देविन्दाभिवन्दिएणं ने मुझे इस मुनि को दिया था, किन्तु जेणऽम्हि वन्ता इसिणा स एसो॥ मुनि ने मुझे मन से भी नहीं चाहा।
मेरा परित्याग करने वाले यह ऋषि नरेन्द्रों और देवेन्द्रों से भी पूजित
२२. एसो हु सो उग्गतवो महप्पा -“ये वही उग्र तपस्वी, महात्मा,
जिइन्दिओ संजओ बम्भयारी। जितेन्द्रिय, संयमी और ब्रह्मचारी हैं, जो मे तया नेच्छइ दिज्जमाणिं जिन्होंने स्वयं मेरे पिता राजा कौशलिक पिउणा सयं कोसलिएण रन्ना॥ के द्वारा मुझे दिये जाने पर भी नहीं
चाहा।"
२३. महाजसो एस महाणुभागो
घोरव्वओ घोरपक्कमो य। मा एयं हीलह अहीलणिज्जं मा सव्वे तेएण भे निद्दहेज्जा॥
–“ये ऋषि महान् यशस्वी हैं, महानुभाग हैं, घोर व्रती हैं, घोर पराक्रमी हैं। ये अवहेलना के योग्य नहीं हैं। अत: इनकी अवहेलना मत करो। ऐसा न हो कि, अपने तेज से कहीं यह तुम सबको भस्म कर दें।”
२४. एयाइं तीसे वयणाइ सोच्चा पुरोहित की पत्नी भद्रा के इन
पत्तीड भद्दाइ सहासियाई। सभाषित.वचनों को सुनकर ऋषि की इसिस्स वेयावडियट्ठयाए सेवा के लिए यक्ष कुमारों को रोकने जक्खा कुमारे विणिवारयन्ति ॥ लगे।
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