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बारसमं अज्झयणं : बारहवाँ अध्ययन
हरिएसिज्जं : हरिकेशीय
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मूल
१.
हिन्दी अनुवाद सोवागकुलसंभूओ
हरिकेशबल श्वपाक-चाण्डालगुणुत्तरधरो मुणी। कुल में उत्पन्न हुए थे, फिर भी ज्ञानादि हरिएसबलो
उत्तम गुणों के धारक और जितेन्द्रिय आसि भिक्खू जिइन्दिओ। भिक्षु थे।
नाम
वे ईर्या, एषणा, भाषा, उच्चार, आदान-निक्षेप–इन पाँच समितियों में यत्नशील समाधिस्थ संयमी थे।
२. इरि-एसण-भासाए
उच्चार-समिईसु य । जओ आयाणनिक्खेवे
संजओ सुसमाहिओ॥ ३. मणगुत्तो वयगुत्तो
कायगुत्तो जिइन्दिओ। भिक्खट्टा बम्भ-इज्जमि जन्नवाडं उवढिओ॥
मन, वाणी और काय से गुप्त जितेन्द्रिय मुनि, भिक्षा के लिए यज्ञ मण्डप में गये, जहाँ ब्राह्मण यज्ञ कर रहे
थे।
४. तं पासिऊणमेज्जन्तं
तवेण परिसोसियं। पन्तोवहिउवगरणं उवहसन्ति अणारिया ॥
तप से उनका शरीर सूख गया था और उनके उपधि एवं उपकरण भी प्रान्त (जीर्ण एवं मलिन) थे। उक्त स्थिति में मुनि को आते देखकर अनार्य
उनका उपहास करने लगे। १०६
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