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१२-हरिकेशीय
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राजकुमारी भद्रा, मुनि के प्रभाव को जानती थी। वह उनके घोर तप और विशुद्ध अनासक्ति को पहचानती थी। अतएव उसने ब्राह्मणों को समझाया कि "मुनि जितेन्द्रिय हैं। महान् साधक हैं। उनका अपमान मत करो। शीघ्र ही अपने अपराधों की क्षमा मांगो।”
सभी ब्राह्मणों ने विनम्र भाव से क्षमा मांगी और वे सब यक्षपीड़ा से मुक्त हो गए, स्वस्थ हो गए। मुनि ने अति आग्रह करने पर भिक्षा स्वीकार की। अनन्तर यज्ञ आदि क्या हैं? इस विषय की विशद विवेचना करते हुए ब्राह्मणों को प्रतिबोध दिया।
प्रस्तुत अध्ययन में यज्ञ-शाला में मुनि के प्रवेश के बाद का प्रसंग है। पूर्व कथा मूल प्रकरण में संकेत रूप से है, जिसे वृत्तिकारों ने परम्परा से लिखा है।
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