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११-बहुश्रुत-पूजा
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२५. जहा से उडुवई चन्दे
नक्खत्त-परिवारिए । पडिपुण्णे पुण्णमासीए एवं हवइ बहुस्सुए।।
२६. जहा से सामाइयाणं
कोट्ठागारे सुरक्खिए। नाणाचनपडिपुण्णे एवं हवइ बहुस्सुए।
जैसे नक्षत्रों के परिवार से परिवृत, नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा पूर्णिमा को परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी जिज्ञासु साधकों के परिवार से परिवृत एवं ज्ञानादि की कलाओं से परिपूर्ण होता है।
जिस प्रकार सामाजिक अर्थात् किसान या व्यापारी आदि का कोष्ठागार (भण्डार) सुरक्षित और अनेक प्रकार के धान्यों से परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी नाना प्रकार के श्रुत से परिपूर्ण होता है।
'अनादृत' देवका ‘सुदर्शन' नामक जम्बू वृक्ष जिस प्रकार सब वृक्षों में श्रेष्ठ होता है वैसे ही बहुश्रुत सब साधुओं में श्रेष्ठ होता है।
२७. जहा सा दुमाण पवरा
जम्बू नाम सुदंसणा। अणाढियस्स देवस्स एवं हवइ बहुस्सुए।
२८. जहा सा नईण पवरा
सलिला सागरंगमा। सीया नीलवन्तपवहा एवं हवइ बहुस्सुए।
जिस प्रकार नीलवंत वर्षधर पर्वत से निकली हुई जलप्रवाह से परिपूर्ण, समुद्रगामिनी सीता नदी सब नदियों में श्रेष्ठ है, इसी प्रकार बहुतश्रुत भी सर्वश्रेष्ठ होता है।
२९. जहा से नगाण पवरे
सुमहं मन्दरे गिरी। नाणोसहिपज्जलिए एवं हवइ बहुस्सुए॥
जैसे कि नाना प्रकार की औषधियों से दीप्त महान् मंदर-मेरु पर्वत सब पर्वतों में श्रेष्ठ है, ऐसे ही बहुश्रुत सब साधुओं में श्रेष्ठ होता है।
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