SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० उत्तराध्ययन सूत्र १९. जहा से तिक्खसिंगे जायखन्धे विरायई। वसहे जूहाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए। २०. जहा से तिक्खदाढे उदग्गे दुप्पहंसए। सीहे मियाण पवरे एवं हवइ बहुस्सुए। २१. जहा से वासुदेवे संख-चक्क-गयाधरे। अप्पडिहयबले जोहे एवं हवइ बहुस्सुए। जैसे तीक्ष्ण सींगोंवाला, बलिष्ठ कंधों वाला वृषभ-सांड यूथ के अधिपति के रूप में सुशोभित होता है, वैसे ही बहश्रुत मुनि भी गण के अधिपति के रूप में सुशोभित होता है। जैसे तीक्ष्ण दाढ़ों वाला पूर्ण युवा एवं दुष्पराजेय सिंह पशुओं में श्रेष्ठ होता है, वैसे ही बहुश्रुत भी अन्य तीथिंकों में श्रेष्ठ होता है। ___ जैसे शंख, चक्र और गदा को धारण करने वाला वासुदेव अपराजित बल वाला योद्धा होता है, वैसे ही बहुश्रुत भी अपराजित बलशाली होता २२. जहा से चाउरन्ते चक्कवट्टी महिड्डिए। चउद्दसरयणाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए। जैसे महान ऋद्धिशाली चातुरन्त चक्रवर्ती चौदह रत्नों का स्वामी होता है, वैसे ही बहुश्रुत भी चौदह पूर्वो की विद्या का स्वामी होता है। २३. जहा से सहस्सक्खे वज्जपाणी पुरन्दरे। सक्के देवाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए। जैसे सहस्रचक्ष, वज्रपाणि, पुरन्दर शक्र देवों का अधिपति होता है. वैसे बहुश्रुत भी होता है। २४. जहा से तिमिरविद्धंसे उत्तिद्वन्ते दिवायरे। जलन्ते इव तेएण एवं हवइ बहुस्सुए॥ जैसे अन्धकार का नशक उदीयमान सूर्य तेज से जलता हुआ-सा प्रतीत होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी तेजस्वी होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy