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उत्तराध्ययन सूत्र
३०. 'असइं तु मणुस्सेहि
मिच्छादण्डो पजुंजई। अकारिणोऽत्थ बज्झन्ति मुच्चई कारगो जणो।'
"इस लोक में मनुष्यों के द्वारा अनेक बार मिथ्या दण्ड का प्रयोग किया जाता है। अपराध न करने वाले निर्दोष पकड़े जाते हैं और सही अपराधी छूट जाते हैं।”
३१. एयमटुं निसामित्ता
हेऊकारण-चोइओ। तओ नमि रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी-1
इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्र से नमि राजर्षि को इस प्रकार कहा
३२. 'जे केइ पत्थिवा तुन्भं
नाऽऽनमन्ति नराहिवा! वसे ते ठावइत्ताणं तओ गच्छसि खत्तिया !॥'
"हे क्षत्रिय ! जो राजा अभी तुम्हें नमते नहीं हैं, अर्थात् तुम्हारा शासन नहीं स्वीकारते हैं, पहले उन्हें अपने वश में करके फिर जाना, प्रव्रज्या ग्रहण करना।”
३३. एयमटुं निसामित्ता
हेऊकारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी-॥
इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षि ने देवेन्द्र को इस प्रकार कहा
३४. 'जो सहस्सं सहस्साणं
संगामे दुज्जए जिणे। एगं जिणेज्ज अप्पाणं एस से परमो जओ-॥
“जो दुर्जय संग्राम में दस लाख योद्धाओं को जीतता है, उसकी अपेक्षा जो एक अपने को जीतता है, उसकी विजय ही परम विजय है
३५. अप्पाणमेव जुज्झाहि
किं ते जुज्झेण बज्झओ? अप्पाणमेव अप्पाणं जइत्ता सुहमेहए-॥
बाहर के युद्धों से क्या? स्वयं अपने ही युद्ध करो। अपने से अपने को जीतकर ही सच्चा सुख प्राप्त होता है
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