________________
९-नमिप्रव्रज्या
ওও
२४. 'पासाए कारइत्ताणं
वद्धमाणगिहाणि य। वालग्गपोइयाओ य तओ गच्छसि खत्तिया ॥
"हे क्षत्रिय ! पहले तुम प्रासाद, वर्धमान गृह, वालग्गपोइया-अर्थात् चन्द्रशालाएँ बनाकर फिर जाना, प्रव्रजित होना।"
२५ एयमटुं निसामित्ता
हेऊकारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी-॥
इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षि ने देवेन्द्र को इस प्रकार कहा
२६. 'संसयं खलु सो कुणई
जो मग्गे कुणई घरं। जत्थेव गन्तुमिच्छेज्जा तत्थ कुव्वेज्ज सासयं ।'
"जो मा में घर बनाता है, वह अपने को संशय-संदिग्ध स्थिति में डालता है, अत: जहाँ जाने की इच्छा हो वहीं अपना स्थायी घर बनाना चाहिए।"
२७. एयमटुं निसामित्ता
हेऊकारण- चोइओ। तओ नमि रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी-॥
इस अर्थ को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्र ने नमि राजर्षि को इस प्रकार कहा
२८. 'आमोसे लोमहारे य
गठिभेए य तक्करे। नगरस्स खेमं काऊणं तओ गच्छसि खत्तिया ।'
"हे क्षत्रिय ! पहले तुम बटमारों, प्राणघातक डाकुओं, गांठ काटने वालों को चोरों से नगर की रक्षा करके फिर जाना, प्रवजित होना।”
२९. एयमढे निसामित्ता
हेऊकारण- चोइओ। तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी-॥
इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षि ने देवेन्द्र को इस प्रकार कहा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org