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५. कोलाहलगभूयं
७.
आसी महिलाए पव्वयन्तंमि । रायरिसिंमि
६. अब्भुट्टियं रायरिसिं पव्वज्जा - ठाणमुत्तमं । सक्को माहणरूवेण इमं
वयणमब्बवी - ॥
८.
तइया नमिमि अभिणिक्खमन्तंमि ॥
'किण्णु भो ! अज्ज मिहिलाए कोलाहल - संकुला | सुव्वन्ति दारुणा सद्दा पासाए गि
य?'
एम
ऊकारण - चोड़ओ ।
नमी
तओ
देविन्दं
निसामित्ता
रायरसी
इणमब्बवी - ॥
मणोरमे ।
९. 'मिहिलाए चेइए वच्छे सीयच्छाए पत्त - पुण्फ - फलोवेर बहूणं बहुगुणे सया - ॥
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हीरमाणमि
मणोरमे ।
१०. वाएण चेयंमि दुहिया असरणा एए कन्दन्ति भो ! खगा ॥'
अत्ता
उत्तराध्ययन सूत्र
जिस समय राजर्षि नमि अभिनिष्क्रमण कर प्रव्रजित हो रहे थे, उस समय मिथिला में बहुत कोलाहल हुआ था ।
उत्तम प्रव्रज्या - स्थान (मुनिपद की भूमिका) के लिए प्रस्तुत हुए नमि राजर्षि को ब्राह्मण के रूप में आए हुए देवेन्द्र ने यह वचन कहा
" हे राजर्षि ! आज मिथिला नगरी में, प्रासादों में और घरों में कोलाहल पूर्ण दारुण (हृदयविदारक) शब्द क्यों सुनाई दे रहे हैं ?"
देवेन्द्र के इस अर्थ (बात या प्रश्न ) को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित नाम राजर्षि ने देवेन्द्र को इस प्रकार कहा—
" मिथिला में एक चैत्य वृक्ष था । जो शीतल छायावाला, मनोरम, पत्र पुष्प एवं फलों से युक्त, बहुतों (बहुत पक्षियों) के लिए सदैव बहुत उपकारक
था
प्रचण्ड आंधी से उस मनोरम वृक्ष के गिर जाने पर दुःखित, अशरण और आर्त ये पक्षी क्रन्दन कर रहे हैं ।” [यहाँ नमि ने अपने को चैत्य वृक्ष से और पुरजन-परिजनों को पक्षियों से उपमित किया है ।]
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