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नवमं अज्झयणं : नववां अध्ययन
नमिपव्वज्जा : नमि-प्रव्रज्या
मूल चइऊणा देवलोगाओ उववन्नो माणुसंमि लोगंमि। उवसन्त-मोहणिज्जो
सरई पोराणियं जाई॥ २. जाइं सरित्तु भयवं
सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे। पुत्तं ठवेत्तु रज्जे अभिणिक्खमई नमी राया। से देवलोग-सरिसे अन्तेउरवरगओ वरे भोए। भुंजित्तु नमी राया बुद्धो भोगे परिच्चयई॥
हिन्दी अनुवाद
देवलोक से आकर नमि के जीव ने मनुष्य लोक में जन्म लिया। उसका मोह उपशान्त हुआ, तो उसे पूर्व जन्म का स्मरण हुआ।
भगवान् नमि पूर्वजन्म को स्मरण करके अनुत्तर धर्म में स्वयं संबुद्ध बने। राज्य का भार पुत्र को सौंपकर उन्होंने अभिनिष्क्रमण किया।
नमिराजा श्रेष्ठ अन्त:पुर में रह कर, देवलोक के भोगों के समान सुन्दर भोगों को भोगकर एक दिन प्रबुद्ध हुए
और उन्होंने भोगों का परित्याग कर दिया।
भगवान् नमि ने पुर और जनपद-सहित अपनी राजधानी मिथिला, सेना, अन्त:पुर और समग्र परिजनों को छोड़कर अभिनिष्क्रमण किया और एकान्तवासी बन गए।
मिहिलं सपुरजणवयं | बलमोरोहं च परियणं सव्वं। चिच्चा अभिनिक्खन्तो चिच्चा अभिनिक्खन्तो एगन्तमहिडिओ भयवं ।।
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