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________________ ७६ : आदर्श कन्या जाता है, और पास में आने-जाने वाले व्यक्ति व डाक्टर आदि सज्जनों को भी घृणा होती है । औषधि का प्रबन्ध : औषधि का बराबर ध्यान रखना चाहिये । औषधि को खूब यत्न से स्वच्छ स्थान में रखने का और नियमित समय पर देने का ध्यान रखो। कौन औषधि कैसी है, किस समय पर देनी है, किस पद्धति से देनी है ?- इत्यादि सब जानकारी लिखकर अपने पास रखो। औषधि की शीशी पर औषधि का नाम लिख लो, और खुराकों की संख्या चिन्हित कर दो। बहुत-सी बार औषधियों की उलट-पलट से बड़ा अनर्थ हो जाता है। एक गाँव की घटना है, कि एक लड़का बीमार पड़ा, गले पर गिल्टी निकली और ज्वर भी हो आया । डाक्टर ने दोनों रोगों के लिए दो अलग-अलग औषधियाँ दे दी । अनपढ़ माता भूल गई। उसके गिल्टी पर लगाने वाले तेल को पिला दिया और पीने का अर्क गिल्टी पर चुपड़ दिया। तेल' में विष था, एक ही घन्टे में लड़का परलोकवासी हो गया। जरा-सी भूल ने कितना अनर्थ कर दिया। सेवा के पथ पर चलिए : _रोगी की सेवा करते-करते यदि बहुत दिन हो जाएँ, तो भो घबराना उचित नहीं है। रोगी की सेवा ही मनुष्य के धैर्य की परीक्षा का अंवसर है । यदि लम्बी बीमारी के समय तुम धीरज खो बैठी और रोगी की सेवा से जी चुराने लगी तो फिर तुम सेवा का मूल्यवान कार्य न कर सकोगी । तुम्हारा हृदय प्रेम के अभाव में सूख जायगा। फिर वह किसी काम का न रहेगा। तब तुम प्रैम किसी भरे पूरे परिवार में गृह-लक्ष्मी बनकर न रह सकोगी। सेवा ही नारो जीवन की सफलता का मूल मंत्र है । अतः नारी को कम से कम सेवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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