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दरिद्रनारायण की सेवा : ७७. के क्षेत्र में तो असीम धैर्य और लगन से लग कर रोगी की सेवा करनी चाहिए । गंगा कितनी शान्त गति से बहती है। उसमें धैर्य का गम्भीरता का, कहीं अभाव दृष्टिगत होता है ? नहीं ! तो फिर तुम्हें भी.,गंगा को तरह शान्त मन से धीरे-धीरे सेवा पर अविरामः गति से बहते रहना चाहिए, चलते ही रहना चाहिए।
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