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अगडदत्त
तो ती उवरि दिट्ठी वम्मह-हरिएण पेसिया जाव । छिद्द लहिऊण तओ कुमरेण सो हओ मम्मे ॥ ३०२ ॥ वहिऊण भिल्ल - नाहं सो कुमरो पविसिओ पिया - सहिओ । एए पुण पञ्च वि तस्स भायरो आगया तुरियं ॥ ३०३ ॥ जीय- विमुकं दहं बाण - पहारण भायरं जेहं ।
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रहमग्गेणं चलिया अमरिस-वस- फुरफुरन्तोट्टा ॥ २०४ ॥ संङ्खउरम्म गएहिं दिट्ठो कुमरो कुमार - परियरिओ । चिट्ठान्त तत्थ पञ्च वि जोयन्ता मारणे छिद्दं ॥ ३०५ ॥ अह अन्न- दिणे कुमरो उज्जाणे मुक्क-सयल - परिवारो । निय - जायाए समेओ दिट्ठो सो तेहि एग़ागी ॥ ३०६ ॥ जा चिन्तन्ति इमं ते वहणोवायं किलिट्ठ - परिणामा । सहसति तस्स जाया दट्ठा दुट्टेण भुयगेणं ॥ ३०७ ॥ गय जीयं नाऊणं अप्पाणं जा खिंवइ जलणंमि । ता विज्जाहर - जुयलं पत्तं सत्थी - कया तेणं ॥ ३०८ ॥ चइऊण तमुज्जाणं पच्चासने गयाइ देवउले | मोत्तूण तं मयच्छि जलणस्स तओ गओ कुमरो ॥ ३०९ ॥ एवं पञ्च विपुरिसालद्ध-च्छला गरूय-तासमावन्ना । वहण करणुज्जय-मणा पच्छन्ना तत्थ चिट्ठन्ति ॥ ३९० ॥ एयाण काणणं चिर- गोविय दीवओ समुग्गाओ । पडीकओ य सहसा सुर - मन्दिर - मज्झयारंमि || ३११ ।। दीवज्जोएण तओ दिट्ठो बालाए ताण लहु-भाया । अइनेह - भिराए पलोइओ सोम-दिट्ठीए ॥ ३१२ ॥ ता वुत्तो सो तीए हो तुमं सुयणु मज्झ भत्तारो । जइ तं अन्नं झायसि ताहे नासेमि जीयं पि ॥ ३१३ ॥ तेण पुणो सा भणिया मुद्धे इछाम हे तुमं किंतु ।
तुह भत्ता जइ जाणइ न सव्वहा अत्थि मे - जीयं ॥ ३१४ ॥ तओ तीए भणिय -----
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