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प्राकृत कथासंग्रह
अह अन्नया कथाई सप्पुरिसो राय-नन्दणो कुमरो । विवरीय-सिक्ख-तुरयं परिवाहइ वाहियालीए ॥ २८९॥ तो तेण दुट्ठ-हरिणा उच्च हरिऊण लोय-पच्चक्खं । वीओ सरणे अइविसमे तावस निवासे ॥ २९० ॥ परिभ्रममाणेण तओ पत्तं कुमरेण जिणहरं एकं । चारण-समणो एगो दिट्ठो बहु- मुणि- गाइणो ॥ २९१ ॥ सो य केरिसो
गह-नक्खत्ताणं ससहरो व्व रयणाण कोत्थुह-मणिव्व । कप्पदुमो व्व तरूणं देवाण सहस्सनयणो व्व ॥ ९२॥ चन्द्रो व्व सोमयाए महि व्व खन्तीए दित्तिए मित्तो । रूवेण वम्महो इव निम्मल - चउणाण-संपन्नो ॥२९३॥ नामेण साहसगई विज्जा-वस-दिट्ठ-विस्स-ववहारो । बोहेन्तो भविय-जणे निम्मल - धम्मो सेणं ॥ २९४ ॥ गन्तृणं कुमरेणं सहसा तो पणमियं चरण-कमलं । लासीसो य तहा उवविट्ठो तस्स पासंमि ॥ २९५॥ लहिऊण अवसर तो भणियं कुमरेण विणय- पत्तेणं । सुहगुरु साह मज्झं स- कोउओ किंपि पुच्छामि ॥२९६॥ के पहु इमे सु-पुरिसा जोव्वण-लायण्ण-रूव-पsिहत्था | वेरग्ग-मग्ग-पडिया पञ्चवि इच्छन्ति वय - गहणं ॥ २९७ ॥ तओ भणियं नाणिणा-
तं
अस्थि इह विसय-मज्झे चमरी नामेण विसम पलितं । भुञ्जइ बलवन्तो धरणिधरो नाम मिलोति ॥ २९८ ॥ अह अन्नया कयाई हय-गय-रह- जोह- सुहड-परियरिओ । एगो नरas - कुमरो समागओ तस्स भूमी ॥ २९९॥ तो तेण तस्स सिबिरं हय-विहयं तक्खणेण काऊणं । आत्तो संगामो बल- वइणा तेण सरिसो त्ति ॥ ३०० ॥ भिडिया महई वेलं जाब न एगो वि तीरए छलिउ । तो तेण नियय-जाया कय-सिङ्गारा कया पुरओ ॥ ३०१ ॥
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