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प्राकृत कथासंग्रह सुहय अहं निय-दइयं वावाइस्मामि तुज्झ पञ्चवख । एवं पयंपिऊणं पईवओ झाम्पओ झत्ति ॥ ३१५ ॥ एत्थन्तरमि कुमरो वहि घेतूण झत्ति संपत्तो। संपत्तण भणिय उज्जोओ इह मए दिवो ॥ ३१६ ॥ तीए तओ भाणियमिण तुह-कर-गहियस्स जलिय-जलणस्स । देवउले संकन्तो पिय उज्जोओ तए दिवो ॥ ३१७ ॥ खग्गं समाप्पिऊणं जा सो दीवेइ हुयवहं कमरो । ता कड़िय-करवालं गावाए मुबए पहरं ॥ ३१८ ।। एएण करुण-मइणा अवहत्थेऊण पाडियं खग्गं । सिहं सहोयराणं चरियं इत्थीए सु-विचित्तं ॥ ३१९ ॥ नाऊण तयं तीए विलसियमइदारुणं निरावेक्खं । वेरग्ग-समावन्ना समागया मह समीवंमि ॥ ३२० ॥ आयाण्णय निय-चरियं संभन्तो माणसंमि सो कुमरो ।
परिभावइ पेच्छ अहो महिलाणं दारुणं चरियं ॥ ३२१ ।। ता सच्चमेयं--
गवाए वालुयं सायरे जलं हिमवओ य परिमाणं ।
जाणन्ति बुद्धिमन्ता महिला-हिययं न याणन्ति ॥ ३५२ ॥ तहा---
रोवन्ति रुवायन्ति य आलियं जपन्ति पत्तियावेन्ति । कवडेण य खन्ति विसं मरन्ति न य जन्ति सम्भावं ॥३२३॥ महिला हु रत्त मेत्ता उच्छू-खण्डं व सक्करा चेव । सच्चिय विरत्त-मेत्ता निम्बं कूरं विसेसेइ ॥ ३२४ ॥ अणुरज्जन्ति खणेणं जुवइओ खणेण पुण विरज्जन्ति । अन्नन्न-राय-निरया हलिद्द-रागो व्व चल-पेम्मा ॥ ३२५ ॥ हिययंमि निट्टराओ तणु-जम्पिय-पहिएहि रम्माओ।
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