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प्राकृत कथासंग्रह एवं ताणं सुह-संगमेण संजाय-परम-तोसाणं। वच्चइ सुहेण कालो रज्ज-सुहं भुञ्जमाणाणं ।। २६१ ॥ अह अन्नया वसन्ते कामुय-लोयाण हियय-आणन्दे। बहु-पउर-परियण-जुओ उज्जाणं उवगओ राया ॥२६२॥ अह सो वि तओ कुमरो सुहि-जण-परिवारिओ पिया-सहिओ। पुर-नारि-पलोइय-रूव-संपओ तत्थ संपत्तो ॥ २६३ ॥ बहु-हास-तोस-वीणा-विणोय-वर-नट्ट-गेय-कव्वेहिं । कीलइ पमुइय-चित्तो मयणमञ्जरियाए सह कुमरो ।। २६४ ॥ अवरण्हे सव्व-जणो रमिऊणं पुर-वरे गओ सिग्छ । राया वि सयल-परिवार-संजुओ भवणमणुपत्तो ॥ २६५ ॥ कुमरो वि विसज्जिय-सयल-परियणो जाव रह-वरं पत्तो । ता सा मयणमञ्जरिया डक्का भुयङ्गेण उग्गेण ॥२६६॥ हाहा रवं कुणन्ती डक्का डक्क त्ति तह य विलवन्ती । कम्पन्त-सयल-गत्ता पडिया कुमरस्स उच्छङ्गे ॥ २६७ ॥ कुमरेण तओ भाणिया मा मा बीहेहि कुवलय-दलच्छि । विसहर-विसम-प्पभवं निमेस-मेत्तेण काहामि ॥ २६८ ॥ एवं भणमाणस्स य मुहुत्त-मेत्तेण सा पिया तस्स। . विसम-विस-पीडियङ्गा खणेण निच्चेयणा जाया ॥ २६९ ॥ जीविय-मुक्क त्ति वियाणिऊण कुमरो वि मोहमावन्नो । विलवइ करुण-सरेणं हाहा-कारे विमुञ्चन्तो ॥ २७० ॥ कहकहवि हु किच्द्रेणं अत्ताणं संवरेवि कुमरेणं ।। रइऊण चियं ताहे ठविया उवरिंमि सा भज्जा ॥ २७१ ॥ पज्जालिऊण जलणं अत्ताणं जा खिवेइ सो कुमरो । सहस त्ति ताव पत्तं गयणाओ खयर-जुयलं ति ॥ २७५ ॥ संपत्त-मेत्तएण य भाणओ कुमरो सु-कोमलं वयणं । किमकारणेण सु-पुरिस अत्ताणं खिवसि जलणम्मि ॥ २७३ ।। अहयं खण-मेत्तेण वि सत्थ-सरीरं करेमि तुह भज्ज । एवं पि पिऊणं पहया अहिमन्तिय-जलेण ॥ २७४ ॥
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