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अगडदत्त जा केत्तियं पएसं कुमरो लवेइ निय-पिया-सहिओ । ता पेच्छइ सो वग्धं अद्धाण-तडंमि उवविद्वं ॥ २४८ ॥ उद्धसिय-केसर-सढं अप्फालिय-वसुह-दीह-लङ्गलं । तं पेच्छिऊण कुमरो हसिऊणं धाविओ समुहो ॥ २४९॥ सज्जेउं रोद्द-कम वग्यो जा देइ निय-कर-पहारं । वेंढिय-वत्थो हत्थो छूढो कुमरेण वयणमि ॥ २५० ॥ दाहिण-हत्थेण पुणो पहओ असि-घेणुयाए खन्धंमि । गाढ-पहारेण हओ धस ति महिमण्डले पडिओ ॥२५॥ निजिणिऊण य वर्ष जाव य लवेइ थोवयं गहणं ।
पेच्छइ ताव भुयङ्गं अद्धाणे संठियं कुमरो ॥ २५२ ॥ केरिसं---
अलि-उल-कज्जल-वणं 'फणि-मणि-किरणोह-भासुर-सरीरं । दो-जीहं रतच्छं धमणी-धय-मुक्क-पुकारं ॥ २५३ ॥ सवडंमुहं उवेन्तं दट्टणं मयगमञ्जरी सप्पं । गुरु-भय-कम्पिय-देहा लग्गा कुमरस्स कण्ठमि ॥ २५४ ॥ मा बीहेसु भणन्तो उत्तिण्णो सन्दणाओ सो सुहडो । आवन्तस्स य फणिणो सहसा विहिओ गई-थम्भो ॥ २५५ ॥ तो काऊं मुह-थभं खेल्लावेऊण छड्डिओ भुयगो। . आरुहिऊण रह-वरं तुरिथं संजोइया तुरया ॥ २५६ ॥ किच्छेण लचिऊणं गहणं तं कहवि नरय-सारिच्छं । संपत्तो सङ्खउरे संतोसिय-नयरि-जण-निवहो ॥ २५७ ॥ वरविहिय-वत्थ-सोहाउलंमि नयरंमि सुन्दर-निवस्स । जण-मण-नयणाणन्दो दाणं दिन्तो पविट्ठो सो ॥ २८॥ निय-मन्दिरं पि पत्तो जणणी-जणएण गरुय-नेहेणं । आलिङ्गिओ स-हरिसं लोएणं पणमिओ ताहे ॥ २५९ ॥ तो भोयणावसाणे पुट्ठो देसन्तराण वुत्तन्तं । तेण समग्गं कहियं जा पत्तो नियय-भुषणमि ॥ २६० ॥
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