________________
माकृत कथासंग्रह भणइ तओ सा रमणी सहसा गन्तण दार-देसंमि । कोइल-महुर-सरेणं मझे आगच्छ भवणस्स ॥ २३५ ॥ पेच्छवि तीए रूवं साणन्दं जा पलोअए कुमरो ।
मयणमञ्जरीए ताव य अवहत्थेणं हओ सहसा ॥ २३६ ॥ भाणयं च
बन्धु-पिया-सहियाओ नयरं गेहं च तुज्झ कज्जेणं । चत्तं मए अलाज्जर तुम पि अन्नं पसत्तो सि ॥ २३७ ॥ निसुणे वि तीए वयणं कुमरो वजेवि तं वणं सहसा । सन्दण-वरमारुहिउं संचलिओ अग्गओ ताहे ॥ २३८ ॥ लवइ जाव सुहेणं वण-गहणं केत्तियं पि भीसणयं ।। सहस त्ति ताव पेच्छइ नासन्तं सवर-संघायं ॥ २३९ ॥ अह पच्छिऊण कुमरो भय-तसिए वणयराण संघाए । चिन्तइ निय-चित्तेणं होयव्वं एत्थ मय-करिणा ॥ २४० ॥ सासङ्को हियएणं जाव पलोएइ तदिसा-हुत्तं । ससि-सङ्ख-कुन्द-धवलं ता पेच्छइ करि-वरं एकं ॥२४ १॥ पज्झरिय-मय-पवाहं मोडिन्तं तरु-वरे महा-काए। मयमञ्जरी खणेणं उव्विग्गा हियय-सज्झमि ॥ ५४२ ॥ कुमरेण तओ भाणयं मा बीहसु मुद्धि रण्ण-कलहाओ। गरुयाण संपया आवया य न हु इयर-पुरिसाणं ॥ २४३ ॥ एवं भणिऊण पियं अवयरिओ रह-वराओ सो तुरियं । गन्तूण उत्तरीयं पक्खित्तं झत्ति पुरओ त्ति ॥ २४४ ॥ ताव य सो मायङ्गो छोहं जा देइ उत्तरिजंमि । ता कुमरो वि सु-दक्खो झड त्ति आरुहइ खन्धम्मि ॥२४॥ खण-मत्तेणं सो मत्त-करिवरो णेग-वणयर-कयन्तो । स-वसो कुमरेण कओ अहि व्व मणिमन्त-जोएण ॥ २४६ ॥ निय-दइयाए पुरओ अवइण्णो गय-वरस्स खन्धाओ। पुणरवि रहंमि रूढो संचलिओ निय-पुरा-हुत्त ॥ २४७ ॥
Jain Education International
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only