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अगडदत्त
मम्म-पएसम्म हओ पडिओ भूमीए भिल्ल नरनाहो । ईसिं वियसिय- नयणो जंपई सो एरिसं वयणं ॥ १९४ ॥
अवि य
नाहं तुह सर- पहओ पहओ कुसुमाउहरूस बाणेण । अहवा किमेत्थ चोज्जं मयणेणं को वि नहु छलिओ ॥ १९५ ॥ एवं पर्यपिऊणं कालगओ भिल्ल-सामिओ झति । एत्थन्तरंमि कुमरो निय-परिवारं पलोएइ ॥ १९६ ॥ जाव न रहे न तुरए सेवय- पुरिसे य नो य वर - सुहडे । एग रहेण कुमरो संचलिओ निय-पुराहुतं ॥ १९७ ॥ कहकहवि तं अरण्णं सो कुमरो लङ्घिऊण भय- रहिओ । गोउलमेगं पत्तो गावी - निवहेण रमणीयं ॥ १९८ ॥ एत्थन्तरंभि कुमरं दट्ठणं गोउलाओ दो पुरिसा ।
पत्ता कुमर - समीवं भणन्ति महुरेहि वयणेहिं ॥ १९९ ॥ कत्तो सि तुमं नर वर ! कत्थ वि वच्चिहिसि कहसु अम्हाणं । सउरे वच्चामो भणिया ते राय-तणएणं ॥ २०० ॥ तो तेहि पुणो भणियं सुपुरिस ! अम्हे वि तुज्झ सत्थेण । सउरे वच्चामो जइ सुपसाओ तुमं होसि ॥ २०१ ॥ एवं ति होउ पडिवज्जिऊण जोएइ जा रहे तुरए । ता सत्थिलय - पुरिसा भणन्ति एयारिसं वयणं ॥ २०२ ॥ एएणं मग्गेणं अस्थि महन्तं अईव कन्तारं । तरस य मज्झे चिट्ठइ चोरो दुज्जोहणो चण्डो ॥ २०३ ॥ मय-मत्तो गल-गज्जि कुणमाणो करि-वरो य अइविसमो । दिट्ठी- विसोय सप्पो वग्घो तह दारुणो अत्थि ॥ २०४ ॥ अन्ने विसावय- गणा कूरा मंसासिणो य दुप्पेच्छा । एवं नाऊण मणे वच्चसु एएण मग्गेण ॥ २०९ ॥ कुमरेण तओ भणिआ मा कुणह भयं पयत्तह पहंमि । कुसलेणं सङ्खउरे संपत्ता देमि किं बहुणा || २०६ ॥
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