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अगडदत्त
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अन्नं च
न घेप्परं सुसिणेहिं न विज्जइं न य गुणेहिं ।
न य लज्जई न य माणिण न य चाडुय-सय-सहस्सेहिं ॥ १४१ ॥
न य खर- कोमल - वयणिहिं न विहवि न जोव्वणेण । दुग्गेज् मणु महिलाहिं चिन्तहिं आयरेण ॥ १४२ ॥ अओ
जो जाइ जुवइ वग्गे सब्भाव मयण- मोहिओ पुरिसो । दुत्तर- दुक्ख समुद्दे निवडइ सो नत्थि संदेहो ॥ १४३॥ एवं च भाविऊणं सयण-तलं वज्जिऊण सो कुमरो । लुको अन्न-परसे ठविऊणं तत्थ पडिरूवं ॥ १४४ ॥ सयणिज्जस्स य उवरिं जन्त-पओगेण जा सिला ठविया । सा झत्ति तीए मुक्कापडिया पलङ्क उवरिम्मि ॥ १४५ ॥ नाऊण चुण्णियं तं पहिट्ट - हियया पहासई पावा । मह भाउयं वहन्तो किं जाणसि अत्तणो हियए ॥ १४६ ॥ सुणिऊण इमं वयणं कुमरो वि पहाविओ तयाहुत्तं । गहिया केस - कलावे भणिया सा एरिसं वयणं ॥ १४७ ॥ हा पावे ! को सकइ मं मारेउं सुबुद्धि - विहवेण । जो जगह पर छडि सो निय-छड्डिए किं सुयइ ॥ १४८ ॥ गहिऊण य तं बालं वसुमइ भवणाओ निम्गओ कुमरो । रत्तो वि अविरतो तीए अइकूर - चरिएहिं ॥ १४९ ॥ गन्तुं राय- समीवे रयाणि पउत्ती य साहिया तेण । चोरो खग्गेण हओ तस्सेसा आणिया भगिणी ॥ १५० ॥ तं चिय पायाल - हरं बीय - दिणे दंसियं नरवइस्स । रित्यं तं नरवइणा समप्पियं नयर - लोयस्स ॥ १५१ ॥ तुट्टेणं नरवरणा दिन्ना कुमरस्स नियय-धूय त्ति । नामेण कमलसेणा कमला इव सयल - जण - दइया ॥ १५२ ॥ वर - गामाण सहस्सं सयं गइन्दाण विउल-भण्डारं । पाइकाणं लक्खं तुरयाणं दुस- सहस्साई ॥ १५३॥
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