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अगडदत्त मज्झे सत्त-दिणाणं पुर-चोरं नो लहामि जइ नाह । तो जलिय-जलण-जालावलीसु जालेमि निय-देहं ॥ ८८ ॥ एयं कुमार-वयणं नरवइणा निसुणिऊण स-पइन्नं । अणुमन्निऊण भणिओ सिज्झेउ समीहियं तुज्झ ॥ ८९ ॥ अह सो गहिय-पइन्नो रायाणं पणमिउं अणुव्विग्गो । परिभमइ नयर-मज्झे जोयन्तो तक्कर-निवासे ॥ ९० ॥ अवि य--
वेसाण मन्दिरेसुं पाणागारेसु जूय-ठाणेसु । कुल्लरियावणेसु य उज्जाण-निवाण-सालासु ॥ ९१ ॥ मढ-सुन्न-देउलेसुं चच्चर-चउहट्ट-हट्ट-सालासु । तकर-गमं नियन्तो हिण्डइ एक्कलओ कुमरो ॥ ९२ ॥ ता जा छट्टो दियहो वोलीणो नो य तकरो दिह्रो । सत्तम-दिणंमि कुमरो गहिओ चिन्ताए स-विसेस ॥ ९३ ॥ किं वच्चामि विदेसं किं वा तायस्स अन्तियं जामि । हरिऊण तं मयाञ्छि किं वा रणमि गच्छामि ॥ ९४ ॥ किं तु न जुत्तं एयं निम्मल-कुल-संभवाण पुरिसाण ।
जं किर निय-जीहाए पडिवन्नं अन्नहा होइ ॥ ९५ ॥ अण-- छिज्जउ सीसं अह होउ बन्धणं वयउ सव्वहा लच्छी । पडिवन्न-पालणे सु-पुरिसाण जं होए तं होउ ॥ ९६ ॥ नेयं महव्वयं खल नरट्ठि-मुदाए जं समुव्वहणं। पण्डिवन्न-पालणं चिय महव्वयं धीर-पुरिसाणं ॥ ९७ ॥ एवं च बहु-वियप्पे नियय-मणे भाविऊण सो कुमरो । अवरण्हय-वेलाए पुरस्स बाहिमि संपत्तो ॥ ९८ ॥ एगस्स पवर-किसलय-समूह-गुविलस्स सीय-छायस्स । उत्तुङ्ग-वियड-साहाउलस्स सहयार-रुक्खस्स ॥ ९९ ॥ उवविट्ठो चिट्ठइ हेठ्ठयंमि चिन्ताभरेण सुढियङ्गो । मोयन्तो दिसि-चकं विज्जा-भट्ठो व्व खयरिन्दो ॥ १० ॥
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