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देखेंगे कि वैशाली, मिथिला से राजगृह और राजगृह से वैशाली, वाणिज्य ग्राम
और मिथिला में भगवान् महावीर के वर्षावास हुए हैं। और ये वर्षावास गंगानदी पार किए बिना कथमपि संभव नहीं हैं।
वर्षावास स्थल का नाम वर्षावास स्थल का नाम तेरहवाँ राजगृह
उन्तीसवाँ वैशाली चौदहवाँ वैशाली तीसवाँ वाणिज्य ग्राम पंद्रहवाँ
वाणिज्य ग्राम इकतीसवाँ वैशाली सोलहवाँ राजगह
बत्तीसवाँ
वैशाली सत्रहवाँ वाणिज्यग्राम
तेत्तीसवाँ राजगृह अठारहवाँ राजगृह
चौतीसवाँ नालन्दा उन्नीसवाँ राजगृह पैतीसवाँ राजगृह बीसवाँ
वैशाली छत्तीसवाँ मिथिला इक्कीसवाँ वाणिज्यग्राम
सैंतीसवाँ राजगृह बाईसवाँ राजगृह
अड़तीसवाँ नालन्दा तेईसवाँ
वाणिज्यग्राम उन्चालीसवाँ मिथिला चौबीसवाँ राजगृह
चालीसवाँ मिथिला पच्चीस से सत्ताइस मिथिला इकतालीसवाँ राजगृह वाणिज्यग्राम बयालीसवाँ पावा मध्यमा
(पावापुरी) उपर्युक्त तालिका पर से स्पष्ट है कि भगवान् महावीर ने चातुर्मासों के इन क्रम में कितनी बार गंगा नदी को पार किया है। बिहार की भौगोलिक स्थिति की थोड़ी-बहुत भी जानकारी रखने वाला पता लगा सकता है कि दक्षिण बिहार और उत्तरी बिहार का विभाजन करने वाली गंगा नदी है। इसको पार किए बिना ये वर्षावासों का क्रम संगति प्राप्त नहीं कर सकता। और, गंगा का उत्तरण नौका द्वारा ही हआ है, कोई लब्धि प्रयोग से, आकाश से उड़कर नहीं। साधारण साधु के लिए लब्धि-प्रयोग वर्जित है. तो अरहन्त के लिए तो यह प्रयोग हो ही कैसे सकता है? अकेले तो नहीं आए हैं। साथ में हजारों साधु-साध्वियों का संघ भी
अट्ठाईसवाँ
•68 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
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