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________________ से ही यह सब जोड़-तोड़ लगाया है। आचार्य भद्रबाहु जैसे श्रुत-केवली भला कैसे मिथ्या कल्पना कर सकते हैं। उन्होंने आवश्यक नियुक्ति में भगवान् महावीर द्वारा नौकारोहण का वर्णन किया है। वही मध्य-काल की यात्रा करता हुआ आज तक हम लोगों के द्वारा वर्णन किया जा रहा है। आचार्य भद्रबाहु को अवश्य ही तत्कालीन खण्ड आगमों में से या श्रुत-परम्परा से वर्णन उपलब्ध हुआ होगा। आचार्य भद्रबाहु जैसे को कल्पित कथाकार कहना विचार-मूढता के सिवा अन्य कुछ नहीं है। अरहन्त होने के पश्चात् एक प्रश्न और खड़ा किया जाता है कि ये तो उनके छद्मस्थ काल की घटनाएँ हैं। अरहन्त होने के पश्चात् नदी पार करने का कोई वर्णन नहीं मिलता। जरा भी बुद्धि से विचार किया जाय, तो छद्मस्थकाल तो फिर भी साध्वाचार की नियमावली से प्रतिबद्ध है। उसमें आचार सम्बन्धी विधि-निषेध की कुछ व्यवस्था नहीं रहती है। यदि रहती है, तो फिर स्वर्ण सिंहासन, छत्र चंवर, दुन्दुभि, पुष्प-वृष्टि आदि का वर्णन-जो समवायांग राज प्रश्नीय आदि मूल आगमों तक में मिलते हैं, उनका समाधान कैसे होगा? साधु-आचार से विपरीत यह आचरण कैसे संगत हो सकता है? अतः स्पष्ट है कि अरहन्त होने के पश्चात् भी गंगा जैसी महानदियाँ पार की है। किन्तु, आचार्यों ने उनके उल्लेख को कोई महत्त्व नहीं दिया। पूर्व लेखानुसार उनका किसी उपसर्ग विशेष वर्ग से यदि सम्बन्ध होता, तो उनका उल्लेख किया जाता। स्पष्ट है, ऐसा कोई उपसर्ग विशेष नदी सम्बन्धी अर्हत् काल में नहीं हुआ। ____ आगम के साथ तर्क का भी अपना एक महत्त्व है। जो बात मूल में स्पष्ट न हो, वह युक्ति-युक्त तर्क से स्पष्ट हो जाती है। कल्पसूत्र, आवश्यक नियुक्ति आदि में भगवान् महावीर के छद्मस्थ और अरहन्त काल के 42 वर्षावासों का वर्णन है। इन्हीं ग्रन्थों के आधार पर और अन्य ऐतिहासिक विद्वान् पुरातत्त्ववेत्ता पंडित मुनिश्री कल्याण विजयजी एवं आचार्य विजय यशोदेवसूरि आदि ने भगवान् महावीर के अरहन्तकालीन चातुर्मासों का वर्णन किया है, उसकी एक तालिका प्रस्तुत है। उस पर से स्पष्ट हो जाता है कि भगवान् महावीर ने अरहन्त काल में भी गंगा महानदी पार की है। गंगा के उत्तर में वैशाली, वाणिज्य ग्राम और मिथिला है और गंगा से दक्षिण बिहार में राजगृह, नालंदा है, तालिका पर से आप भगवान् महावीर द्वारा महानदियों का संतरण 67 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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