SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विडम्बना है आज के चिंतन की ? आज के कुछ अहंग्रस्त साधु भगवान् से भी बढ़कर संयमी घोषित कर रहे हैं अपने आपको ! अहिंसा का बहुत बड़ा खटका है न अंतर्मन में! खटका सच्चा है या झूठा - यह तो वे ही कह सकते हैं। हाँ खटके का नारा अवश्य बुलंद है। बात और कुछ नहीं है। कोई भी ऐसा आपवादिक कारण नहीं है, जो भगवान् के समक्ष रहा हो। भगवान् महावीर और उनके संघ द्वारा नदी पार करने का एकमात्र हेतु धर्म एवं नीति का प्रचार है । भगवान् महावीर के युग में सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति बड़ी विचित्र थी । जातीय श्रेष्ठता का अहंकार जनमानस पर बुरी तरह छाया हुआ था और इस कारण तत्कालीन शूद्रजन पशुओं से भी बुरी स्थिति में जीवन गुजार रहे थे। नारी जाति पर भी भयंकर अत्याचार हो रहे थे। यज्ञों में मूक पशुओं को होमा जा रहा था । यहाँ तक कि देवी - देवताओं की प्रसन्नता के लिए मनुष्यों तक की बलि दी जा रही थी । धर्म भी अर्थहीन क्रियाकाण्डों का केवल शवमात्र रह गया था। भगवान् को जन-जीवन में से यह सब अज्ञान-अंध कार दूर करना था। इसके लिए उन्होंने धार्मिक एवं सामाजिक उभयमुखी क्रांति का सिंहनाद किया, फलतः वे अपने विशाल साधुसंघ को साथ लिए तूफानी नदियों को भी पार कर सुदूर प्रदेशों में विहार करते रहे। इसके लिए उन्हें बार-बार अनेक विराट् जलधाराओं तथा वन- प्रदेशों को पार करना पड़ा। इसी पथ पर आगे आनेवाले वे साहसी आचार्य और मुनि भी आए, जो अपने युग में आन्ध्र, तमिल, महाराष्ट्र, कोंकण, मालव आदि आर्येतर और विदेश कहे जानेवाले देशों में भी धर्म प्रचार हेतु पहुँचे और वहाँ की तत्कालीन असंस्कृत जनता को धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से संस्कारी बनाया। जैन मुनियों द्वारा सुदूर जावा, सुमात्रा आदि देशों में विहार यात्रा करने के भी कुछ ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं, जो अभी विचाराधीन हैं, जिनकी चर्चा यथावकाश फिर कभी हो सकेगी। ध्वनिवर्धक जैसे नगण्य प्रश्न पर और सुदूर प्रदेशों की दीर्घ विहार यात्राओं पर हिंसा और परिग्रह तक के दोषों की अर्थहीन चर्चा करनेवाले महानुभाव प्रस्तुत लेख पर यदि ठण्डे दिमाग से कुछ विचार करेंगे तो अवश्य ही भगवान् महावीर की उपरिचर्चित विहारचर्या का मर्म समझ सकेंगे, हिंसा - अहिंसा की स्थूल धारणाओं से ऊपर उठकर उनके वास्तविक तथ्य को हृदयंगम कर सकेंगे। Jain Education International भगवान् महावीर ने गंगा नदी क्यों पार की? 59 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy