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________________ शास्त्र झूठे कैसे हो सकते हैं? यह भगवान् ! की वाणी है, सर्वज्ञ की वाणी है । " विज्ञान व अध्यात्म का क्षेत्र मैं सोचता हूँ, धार्मिक के मन में आज जो यह अकुलाहट पैदा हो रही है, धर्म के प्रतिनिधि तथाकथित शास्त्रों के प्रति उसके मन में जो अनास्था एवं विचिकित्सा का ज्वार उठ रहा है, उसका एक मुख्य कारण है - वैचारिक प्रतिबद्धता ! कुछ परंपरागत रूढ़ विचारों के साथ उसकी धारणा जुड़ गई है, कुछ तथाकथित ग्रंथों और पुस्तकों को उसने धर्म का प्रतिनिधि शास्त्र समझ लिया है, वह न तो इसका ठीक तरह बौद्धिक विश्लेषण कर सकता है और न ही विश्लेषण प्राप्त सत्य के आधार पर उनके मोह को ठुकरा सकता है। वह बार-बार दुहराई गई धारणा एवं रूढ़िगत मान्यता के साथ बँध गया है, प्रतिबद्ध हो गया है, बस, प्रतिबद्धता - आग्रह ही उसके मन की विचिकित्सा का कारण है। यह शास्त्र की चर्चा करने से पहले एक बात हमें समझ लेनी है कि अध्यात्म और विज्ञान राम-रावण जैसे कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है। दोनों ही विज्ञान हैं, एक आत्मा का विज्ञान है तो दूसरा प्रकृति का विज्ञान है । अध्यात्म विज्ञान के अंतर्गत आत्मा के शुद्धाशुद्ध स्वरूप, बंधमोक्ष, शुभाशुभ परिणतियों का ह्रास - विकास आदि का विश्लेषण आता है। और विज्ञान, जिसे मैं प्रकृति का विज्ञान कहना ठीक समझता हूँ, इसमें हमारे शरीर, इंद्रिय, मन, इनका संरक्षण - पोषण एवं चिकित्सा आदि, तथा प्रकृति का अन्य मार्मिक विश्लेषण समाहित होता है। दोनों का ही जीवन की अखंड सत्ता के साथ संबंध है। एक जीवन की अंतरंग धारा का प्रतिनिधि है तो एक बहिरंग धारा का । अध्यात्म का क्षेत्र मानव का अंतःकरण, अंतस्चैतन्य एवं आत्मतत्त्व रहा है, जबकि आज के विज्ञान का क्षेत्र प्रकृति के अणु से लेकर विराट् खगोल- भूगोल आदि का प्रयोगात्मक अनुसंधान करना है, इसलिए वह हमारी भाषा में बहिरंग ज्ञान है, जबकि अंतरंग चेतना का विवेचन, विशोधन एवं ऊर्ध्वकरण करना अध्यात्म का विषय है, वह अंतरंग ज्ञान है । इस दृष्टि से विज्ञान व अध्यात्म में प्रतिद्वंद्विता नहीं, अपितु पूरकता आती है। विज्ञान प्रयोग है, अध्यात्म योग है। विज्ञान सृष्टि की, परमाणु आदि की चमत्कारी शक्तियों का रहस्य उद्घाटित करता है, प्रयोग द्वारा उन्हें हस्तगत करता है, और अध्यात्म उन शक्तियों का कल्याणकारी उपयोग करने की दृष्टि देता है। 10 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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