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________________ 2 | क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है? ___ अध्यात्म और विज्ञान दोनों ही मानव जीवन के मुख्य प्रश्न हैं और बहुत गहरे हैं। जीवन के साथ दोनों का घनिष्ठ संबंध होते हुए भी आज दोनों को भिन्न भूमिकाओं पर खड़ा कर दिया गया है। अध्यात्म को आज कुछ विशेष क्रियाकांडों एवं तथाकथित चालू मान्यताओं के साथ जोड़ दिया गया है और विज्ञान को सिर्फ भौतिक अनुसंधान एवं जगत् के बहिरंग विश्लेषण तक सीमित कर दिया गया है। दोनों ही क्षेत्रों में आज एक वैचारिक प्रतिबद्धता आ गई है, इसलिए एक विरोधाभास सा खड़ा हो गया है, आज के तथाकथित धार्मिकजन विज्ञान को सर्वथा झूठा और गलत बता रहे हैं और विज्ञान भी बेरहमी के साथ धार्मिकों की तथाकथित अनेक मान्यताओं को झकझोर रहा है। अपोलो-8 अभी-अभी चन्द्रलोक में परिक्रमा करके आ गया है, वहाँ के चित्र भी ले आया है। अपोलो-8 के तीनों अमरीकी अंतरिक्ष यात्रियों ने आँखों देखी स्थिति बताई है कि-वहाँ पहाड़ों और गड्ढों से व्याप्त एक सुनसान वीरान धरातल है और उनकी घोषणा को रूस जैसे प्रतिद्वन्द्वी राष्ट्र के वैज्ञानिकों ने भी सत्य स्वीकार किया है; परन्तु हमारा धार्मिक वर्ग एक सिरे से दूसरे सिरे तक आज इन घोषणाओं से काफी चिंतित हो उठा है। मेरे पास बाहर से अनेक पत्र आये हैं, बहत से जिज्ञास प्रत्यक्ष में भी मिले हैं-सबके मन में एक ही प्रश्न तरंगित हो रहा है-"अब हमारे शास्त्रों का क्या होगा? हमारे शास्त्र तो चंद्रमा को एक महान् देवता के रूप में मानते हैं, सूर्य से भी लाखों मील ऊँचा' चन्द्रमा का स्फटिक रत्नों का विमान है, उस पर सुंदर वस्त्र-आभूषणों से अलंकृत देव-देवियाँ हैं। चन्द्र विमान एक लाख योजन ऊँचे मेरु पर्वत के चारों ओर भ्रमण करता है। चन्द्र मे जो काला धब्बा दिखाई देता है वह मृग का चिह्न है। हमारे शास्त्रों के इन सब वर्णनों का अब क्या होगा? वहाँ जाने वाले तो बताते हैं, चित्र दिखाते हैं, कि चन्द्र में केवल पहाड और खड्डे हैं. किसी यात्री से किसी देवता की मुलाकात भी वहाँ नहीं हुई, यह क्या बात है? ये वैज्ञानिक झूठे हैं या शास्त्र? क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है? 9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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