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________________ प्रकोप मानते रहे हैं। वर्षाकाल को छोड़कर अन्य समय में जो वर्षा होती है, उसमें बिजली चमकती है और गरज होती है, तो आगमों का स्वाध्याय कितने ही पहर तक छोड़ दिया जाता है। बिजली चमकी या गर्जन हुआ कि बस तत्काल स्वाध्याय जैसा तप क्यों छोड़ दिया जाता है? स्पष्ट ही है कि जैनाचार्य भी विद्युत् आदि को दैवी प्रकोप मानने के भ्रम में थे। यदि विद्युत् को साधारण अग्नि की चमक ही मानते होते तो ऐसा करने की जरूरत नहीं थी। धरती पर कितनी ही आग सुलगती रहती है, पर स्वाध्याय कहाँ बन्द होता है? असज्झाय कहाँ मानी जाती है? इसका अर्थ यह है कि जैनाचार्य लोक-धारणाओं के अनुसार भी बहुत सी बातें कहते रहे हैं, जो आज तर्कसिद्ध सत्य की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं। विद्युत् को अग्नि मानने की धारणा भी लोकविश्वास पर ही बना ली गई, ऐसा मालूम होता है। यह बात आगमों की दूसरी मान्यताओं से भी सिद्ध हो जाती है। आगमों में दश प्रकार के भवनपति देवों का वर्णन आता है। वहाँ अग्निकुमार एक देव जाति है, तो विद्युत् कुमार उससे भिन्न एक दूसरी ही जाति है। ये देवजातियाँ प्रकृति के कुछ तत्त्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं और अपने नाम के अनुसार काम भी करती हैं। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में भगवान् ऋषभदेव के दाह-संस्कार का वर्णन है, प्रथम अग्निकुमार अग्नि प्रज्वलित करते है और फिर वायुकुमार वायु के द्वारा उसे दहकाते हैं। अन्यत्र भी जहाँ कहीं देवों द्वारा अग्नि का कार्य आया है, अग्निकुमारों द्वारा ही निष्पन्न होने का उल्लेख है। प्रश्न है, यदि विद्युत् सचमुच में अग्नि ही है तो एक अग्नि कुमार देव ही काफी हैं, अलग से विद्युत् कुमार को मानने की क्या आवश्यकता है? अग्निकुमारों के मुकुट का चिह्न पूर्ण कलश बताया है, और विद्युत्कुमारों का वज्र। ये दोनों चिह्न अलग क्यों हैं, जबकि वे दोनों ही अग्निदेव हैं तो।' विद्युत् कुमारों का वज्र का चिह्न वस्तुतः उस लोकमान्यता की स्मृति करा देता है, जो विद्युत् को इन्द्र का वज्र मानती रही है। उक्त विवेचन से यह मालूम हो जाता है उक्त सूत्रकार विद्युत् को अग्नि नहीं मानते थे, अग्नि से भिन्न कोई अन्य ही दिव्य वस्तु उनकी कल्पना में थी। विद्युत् का मूल अर्थ है-'चमकना'। आकाश में बादल छाये और उनमें एक चमक देखी, और उसे विद्युत् कहा जाने लगा। विद्युत् के जितने भी पर्यायवाची शब्द है, उनमें कोई भी एक ऐसा शब्द नहीं है, जो अग्नि का वाचक हो। और अग्नि के जितने भी पर्यायवाची शब्द हैं, उनमें एक भी ऐसा नहीं, जो विद्युत् का वाचक हो। अतः स्पष्टतः सिद्ध है कि अग्नि और विद्युत् दो भिन्न वस्तु है। ध्वनिवर्धक का प्रश्न हल क्यों नहीं होता? क्या विद्युत अग्नि है? 99 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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